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श्री परमहंस स्मृति महोत्सव : धर्म और ज्ञान के महामानव व युगदृष्टा थे परमहंस महाराज

Editor

Sat, Jun 7, 2025

प्रयागराज - उत्तरप्रदेश की भूमि वैसे भी सनातन धर्म के अवतारों व भगवान की जननी रही,यहां सृष्टि के पहले मानव का प्रादुर्भाव हुआ। तमसा नदी के तट के समीप बसा वनाच्छादित गाँव भइयाँ कभी चमत्कारों की रज का केन्द्रविन्दु रहा करता था। इस भूमि पर महामानव ने अपने जीवन के कुछ ऐसे अविस्मरणीय वर्ष बिताए जिसमें ब्रह्म और जीव का सुखद पल भी देखने को मिला। यहां वह महामानव अवतरित हुए जिनमें योग,संकल्प, तप,त्याग,तपस्या,ज्ञान,धर्म और योगमाया का समावेश रहा। जंगल में भेड़ चराने वाले को अपनी लीला का दर्शन कराकर उसका जीवन धन्य करते हुए घोर जंगल के पास रह रहे ग्रामीणों के जीवन में भी धर्म का प्रवाह किया।

गाँव भइयाँ उसी धर्म योग भूमि का नाम है,जहां योगी राज चमत्कारों से परिपूर्ण धर्म सम्राट श्री गोपालमणि जी महाराज साक्षात दृष्टिगत रहकर सैकड़ों गाँव के लोगों के जीवन नौका को भवसागर पाए किये ।

लोग उन्हें परमहंस महराज जी के नाम से जपते हैं,उनकी जय जयकार करते हैं। यूं कहा जाय तो आज भी उन्ही की कृपा व आशीर्वाद से यह गाँव बचा भी है। जन जन में बसते हैं परमहंस महाराज। अपने योगबल से 302 वर्षों तक इस धरा धाम में रहकर धर्म के अनेकों ग्रंथो व स्मृतियों का संकलन कर लोगों को धर्मनिष्ठ बनाने व ज्ञान का प्रसार करते रहे।

उन्ही के स्मृति में यह सप्तदिवसीय महा उत्सव आयोजित किया गया है। गांव में उन्ही के द्वारा मन्दिर का ढांचा खींचा गया और निर्माण कराया गया। समय समय पर अपने अपने ढंग से आसीन गादीपतियो ने इस मंदिर को भव्यता देते आये हैं। यह मन्दिर श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर के नाम से विख्यात है। जहां भगवान श्री कृष्ण व राधा जू महारानी का धवल- स्वर्ण विग्रह स्थापित है। यहां प्रतीक रूप में मुरली व मुकुट की पूजा विशेष रुप से की जाती है। परमहंस जी महाराज की सेज,पढ़रावनी,स्वेत कांति वस्त्र,चांदी का धर्म दंड, आदि संजोकर दर्शनीय है। वह पालकी आज भी मन्दिर में सहेज कर रखी गई है जिसमें पूज्य परमहंस महाराज जी को 18वीं सदी में गाँव में लाया गया था। स्मृतियां जीवन की सहजता व पौराणिकता की आभास कराती हैं। आज भी परमहंस महराज की उपस्थिति उन सुन्दरसाथों( श्रद्धालुओं) को होता है जो पवित्र सहज भाव से उनको जपते हैं,उनकी ओर निहारते हैं।

श्रीमद्भागवत कथा का आज दूसरा दिवस,व्यास पीठ पर पधारे हैं आचार्य दीपक महाराज -

स्मृति महोत्सव के दूसरे दिन श्री मद भागवत के व्यास आचार्य दीपक जी महाराज ने श्री भागवत के वृतांत को बताते हुए कहा कि,असत्य को सत्य और सत्य को असत्य मानना ही माया है और वही दुख का कारण है। उन्होंने बताया कि,यह दुनिया भरम जाल है जिसमें माया का पहरा है और उसी के चलते भ्रम वश प्राणी भूल जाता है कि हमारा जो यह शरीर है वह कुछ ही समय के लिए है जो कि नश्वर है,मिट जाने वाला है। चूंकि, भरम में विकार उतपन्न होता है और उसी विकार से जीव अधार्मिक होकर पाप करता है और श्रापित होता है। राजा परीक्षित भी श्रापित होने के कारण अल्प समय में धर्म व ज्ञान रूपी श्री मद्भागवत कथा का श्रवण किया था। सात दिनों तक की कथा सुनने के बाद राजा परीक्षित मोहपाश से मुक्त हुए थे।

। मानव जीवन को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि सजगता पूर्वक प्रतिदिवस का सम्मान करते हुए धर्ममय दिनचर्या की शुरुआत करें,व रात्रि विश्राम करते वक्त ईश्वर को धन्यवाद देकर प्रफुल्लित मन से आराम करें।

विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सप्तदिवसीय श्रीमद्भागवत कथा एवं कुलजमस्वरुप साहब का पारायण-पाठ आयोजित किए जाने को लेकर श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर भ‌इयां के महन्त श्री ब्रह्मानन्द जी महाराज ने बताया कि मन्दिर की स्थापना परमहंस गोपाल मणी दास जी महाराज द्वारा की गई थी।उनकी स्मृति में उनका जन्मदिन एवं धामगमन दिवस आषाढ़ प्रतिपदा को ग्रामीणों द्वारा आस्था एवं भक्ति के साथ मनाया जाता है।

आध्यात्मिक जगत में भ‌इयां ग्राम का महत्व पूर्ण स्थान है इसलिए परमहंस स्मृति दिवस को ही ग्राम जयंती दिवस के रूप में भी ग्रामीणों द्वारा मनाये जाने की परम्परा है। कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित ग्रामीण तौलन प्रसाद दूबे ने बताया कि सप्त दिवसीय कार्यक्रम के बाद ही न‌ई ऊर्जा के साथ सभी कृषक ग्रामीण किसानी के कार्य में तन्मय होकर लग जाते हैं और बेहतर उत्पादन का आनंद लेते हैं। कार्यक्रम स्थल पर राधेश्याम मिश्र, अवधेश कुमार, अधिवक्ता कमलेश मिश्र, रामलाल, गामा आदिवासी,मार्कण्डेय प्रसाद, दीपिका देवी, शर्मिला देवी, यशोदा मिश्रा , सुरेश चंद्र मिश्र, राजेश कुमार, संजय, चन्दन, हरिश्चन्द्र मिश्र, सहित सैकड़ों महिलाएं और ग्रामीण उपस्थित रहे।

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