नारी सम्मान - चातुर्मास्य : नारी अबला नहीं,वेदों पुराणों में नारी को आदर्श माना गया है-

Editor
Fri, Aug 15, 2025
विशिष्ट बिंदु
संस्कृति के मूल सिद्धांतों को सामने लाने की जरूरत।
त्याग,तपस्या का आधार रही नारी शक्ति।
नारी अबला नही बल्कि अतिबला है।
मुम्बई- मुम्बई महाराष्ट्र की आर्थिक व आध्यात्मिक नगरी है। यहां माया भी है और शक्ति भी। यहां के बोरीबली में इन दिनों ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगदगुरु शंकराचार्य जी का चातुर्मास्य चल रहा है जिसमें प्रतिदिन वेद वेदांत पर पूज्य शंकराचार्य अपना दर्शन विचार देते हैं।
ज्योतिष्पीठाधीश्वर उत्तराम्नाय शंकराचार्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008' ने कहा है कि भारतीय सनातन संस्कृति के मूल सिद्धांत स्वयं सनातनी ही भूलते जा रहे हैं। उन मूल सिद्धांतों को सामने लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में मातृशक्ति हमेशा त्याग, तपस्या और पोषण का आधार रही है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में महिलाओं का हमेशा ही सम्मान रहा है और पुरुषों ने नारी की हमेशा रक्षा की है।
हमारे यहां मनुष्य को छोड़िए पशु-पक्षी भी नारी की रक्षा करते रहे हैं। उन्होंने महिलाओ को अबला कहने और उनका शोषण होने की घटनाओं पर पूछा कि आज का भारत क्या ऐसा है? आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने माताओं को अबला समझा जा रहा है। यह केवल गलत ही नहीं अपराध है। नारी के पास आध्यात्म का बल है। माताएं शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से पालन-पोषण और सुरक्षा का प्रतीक हैं। मातृशक्ति को अबला मत कहो, वह अद्भुत ऊर्जा, बल और सामर्थ्य रखती है। नारी अबला नहीं है। वह अतिबला है। उसे शक्ति का रुप माना गया है। उसकी शक्ति का पार नहीं है। उसमें देवी की विशाल शक्ति है। संसार की सभी स्त्रियां देवी का रूप हैं। देवी के रूप में वह सृजन, विनाश और परिवर्तन की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। नारी के बल को हमेशा रोका गया है क्योंकि जहां-जहां महिला ने अपने बल का प्रयोग किया वहां कुल का नाश हो गया। इसीलिए उसे यही कहा गया कि हम रक्षा करेंगे वह कमाने बाहर नहीं जाएगी। इस तरह उसे खूब सम्मान दिया गया। उसके बल का प्रयोग नहीं किया गया वरना नाश ही हो जाता। उसकी रक्षा उसके पिता, भाई,पति ने की।इसीलिए उसे अबला समझा गया।
पौराणिक कथाओं के माध्यम से महाराजश्री ने बताया कि सनातन संस्कृति में सावित्री और अनसूया दोनों ही नारियों के लिए महान आदर्श हैं। सावित्री अपने पतिव्रत धर्म और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती हैं, जिन्होंने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण बचाए थे। उन्होंने पतिव्रता सावित्री की कहानी सुनाते हुए कहा कि नारी वो शक्ति है जो जिसके सामने भी यमराज का पंजा भी ढीला हो गया था। पतिव्रता सावित्री ने यमराज से जब वर मांगा तो अपने ससुर के लिए भी मांगा और अपने पिता के लिए भी मांगा इसीलिए कहा जाता है कि कन्या दोनों कुलों को तारती है। सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्रति अटूट प्रेम और निष्ठा दिखाई, जिसके कारण यमराज को निर्णय बदलना पड़ा और सत्यवान मृत्यु के मुंह से भी वापस आ गए।
इस तरह सावित्री ने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ संकल्प से यमराज को भी पराजित किया। उसने कठिन परिस्थितियों में भी अपने पति का साथ नहीं छोड़ा और धर्म का पालन किया अनसूया अपनी पति-भक्ति, तपस्या और त्याग के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनकी त्रिदेवों ब्राम्हा, विष्णु व महेश ने भी परीक्षा ली थी। दोनों ही नारियाँ, अपने-अपने तरीकों से, भारतीय संस्कृति में नारीत्व और धार्मिकता की प्रतीक हैं और महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, जिन्होंने अपने-अपने तरीकों से पतिव्रत धर्म, त्याग, तपस्या और आध्यात्मिक शक्ति का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। इसी तरह अनसुइया अपनी पति-भक्ति और तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं।
उन्होंने अपने जीवन में त्याग और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने सतीत्व और पवित्रता से त्रिदेवों को भी मोहित कर लिया। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी, शक्ति और परिवार के अभिन्न अंग के रूप में माना जाता है। उन्हें वेदों और पुराणों में आदर्श माना गया है। ज्ञान, कला और शक्ति का स्रोत कहा गया है।
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