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सनातनियों को संजीवनी के रूप में मिला एक नया अध्याय : सनातन संजीवनी का सनातन के सूर्य पूज्य शंकराचार्य ने किया विमोचन

Release of Sanatan Sanjivani

काशी (वाराणसी) - धर्मो रक्षति रक्षितः एक ऐसा वाक्यांश है जो हमारे धर्म का मूल है। मतलब साफ है कि धर्म की जो रक्षा करता है,धर्म भी उसी की रक्षा करता है। यह शब्द लगता छोटा है लेकिन इसके मायने बहुत ही बृहद व व्यापक हैं। सनातन शब्द और धर्म शब्द एक दूसरे के पर्याय हैं जो जीवन जीने की सटीक और सारगर्भित पद्धति है।

आज की सत्य उद्घोष है सनातन संजीवनी - जैसा नाम से ही उदधृत हो रही है। मानव जीवन की संजीवनी यदि कोई है तो वह सनातन है और सनातन की संजीवनी यदि है तो वह कहा गया धर्मपूर्वक सत्य वचन है। वर्तमान समय में जब सनातन शब्द की आंधी तो चल रही है लेकिन उस आंधी में अंधड़ गुबार ऐसा है जो सनातन धर्म को विच्छेदित कर रहा है। लोग इसकी गूढ़ता व शुद्धता को समझ पाने में असमंजस में हैं। ऐसे वक्त में आवश्यकता है संजीवनी की जो लोगों को जीवन दान दे और वह भी धर्म के रुप में सनातन की शुद्धता व सहजता में । सनातन धर्मी इसके लिए सनातन के सबसे बड़े आचार्य की ओर निहारते हैं उन्ही से उम्मीद रखते हैं। वर्तमान समय में जहां सत्य,शास्त्र,धर्म,आचरण की महती आवश्यकता है लेकिन चारों ओर कुहासा ही कुहासा है। ऐसे समय में पूरी सत्यता तन्मयता और दृढ़ता से एक ही छवि दिखती है वह है ज्योतिषपीठ के पूज्य शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज १००८ की.

सनातन संजीवनी का विमोचन करते पूज्य शंकराचार्य जी महाराज

सनातन संजीवनी एक अध्याय है, पुस्तक है धर्म,निष्ठा,सत्यता के साथ बेबाक जीवन का ।इस पुस्तक में पूज्य शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती जी महाराज की जीवनी का संकलन है। यह पुस्तक शास्त्र सम्मत सत्य आधारित जीवन का परिचय है जो निश्चित रुप से एक सनातन धर्मी को नया बल व धर्म पथ का आभास कराता है। इस पुस्तक का संकलन मठ की साध्वी श्री पूर्णाम्बा दीदी जी ने किया है।

"सनातन संजीवनी"का विमोचन काशी श्री विद्या मठ में जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्य स्वामी श्री जी के कर कमलों द्वारा किया गया । इस दौरान शहर के प्रतिष्ठित गणमान्य व विद्वत जन उपस्थित रहे। सभी ने मुक्त कंठ से सनातन धर्म का जयघोष करते हुए हर्ष व्यक्त किया।

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