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चिंताजनक रिपोर्ट : स्कूली बच्चों में नीद की कमी से मंडरा रहा मानसिक व शारीरिक खतरा

Editor

Tue, Jun 3, 2025

दिल्ली (एजेंसी)- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर जब खतरा मंडराने लगे स्थिति बेहद चिंताजनक हो जाती है। खासकर बच्चों का जीवन और स्ट्रेसपूर्ण हो जाता है। स्कूली बच्चों में कुछ ऐसा ही हो रहा है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 22.5 %बच्चे नींद से वंचित हैं। यह रिपोर्ट अपने आप में एक चिंताजनक तथ्य है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में "नींद की कमी पर अध्ययन" विषय पर एक रिपोर्ट पेश करते हुए नीति आयोग के स्वास्थ्य सदस्य डॉ प्रोफेसर वी के पॉल ने कहा कि स्कूली बच्चों में से एक चौथाई उचित नींद से वंचित हैं। जिससे उनमें शारीरिक और मानसिक समस्याओं का खतरा मंडरा रहा है।

यह अध्ययन स्वास्थ्य मंत्रालय और और सर गंगा राम अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से किये गए,12 से 18 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों की नींद की गुणवत्ता व असर पर था। स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार संज्ञानात्मक कार्यों को प्रभावित करती है इस पर फोकस किया गया। डॉ पॉल ने कहा कि,नींद जो है मस्तिष्क के कामकाज,मजबूत प्रतिरक्षा,श्रेष्ठ प्रदर्शन और स्मृति के लिए महत्वपूर्ण है।बच्चों को कम से कम 7 से 8 घण्टे की नींद लेना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि बच्चों की नींद न हो पाने से कई तरह की विकृतियां पैदा हो रही हैं।यह एक मौलिक जैविक आवश्यकता है।आगे यह भी कहा गया कि,स्कूली बच्चों में नींद की कमी का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव आज के शैक्षणिक माहौल में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है।बच्चे मोबाइल के बढ़ते स्क्रीनिंग और स्कूली टाइमिंग से खुद पर न्याय नही कर पा रहे हैं। बच्चे अपने जीवन शैली से भटक रहे हैं इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है,पैरेंट्स निगरानी जरूर रखें ऐसे समय में।

बच्चों को अधिक बुद्धिमान,कुशल व सक्षम बनाने के लिए सकारात्मक नींद लेनी जरूरी है। नींद जितनी गहरी व सुखद होगी उतना ही मानसिक विकास होगा।

अध्ययन में जो निष्कर्ष निकाला गया उसमें 22.5 प्रतिशत बच्चे नींद से वंचित हैं,जो मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। अध्ययन में शामिल किए गए 60 प्रतिशत प्रतिभागियों में अवसाद के लक्षण दिखे जबकि 65.7 प्रतिशत किशोरों में कम से मध्यम स्तर की की कमजोरी देखी गई जो संज्ञान में ली जानी चाहिए।

अध्ययन से यह भी पता चला कि स्क्रीन टाइम ( मोबाइल) के अलावा स्कूल की दिनचर्या व परिवार की आदतें भी नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं और दिन के समय में अस्वस्थता बढ़ाने में सहयोगी बनती हैं। यह एक चिन्ताजनक रिपोर्ट है जो कि नीति आयोग ने सार्वजनिक पैमाने पर अभिभावकों व समाज को चेताने का कार्य की है ताकि बच्चों में गलत व अस्वस्थ दिनचर्या बहुत घर न कर पाए। बच्चों को संभालना व उन पर निगरानी रखते हुए सकारात्मक घरेलू माहौल से दिनचर्या के बदलाव के साथ नींद की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है ताकि उनकी नींद पूरी हो और वे मानसिक सुदृढ़ता को प्राप्त कर कामयाबी हासिल कर सकें।

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