क्या उदयपुर की घटना से किसी नई समझ का उदय होगा?
उदयपुर में किसकी उदय ?
चिंतन / विश्लेषण –
भारत सांप्रदायिक घृणा की उबलती हुई कढाई के रूप में कब तक किस तापमान तक उबलेगा ? यह भारत का कैसा है उदय ? आइये जानने की कोशिश करते हैं…!
विकासशील देश मे शुमार भरतखण्ड,आर्यावर्त,भारत व इंडिया के नाम से जाना जाने वाला हमारे प्यारे देश को न जाने किसकी नजर सी लग गई है। हिंसा थमने का नाम ही नही ले रही है। अब तो कलम भी ऊब गई है,हिंसा,दर्द व व्यथा लिखते लिखते। इस देश की दुर्दशा कहाँ तक होगी इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। धर्म या किसी विचारधारा के नाम पर होने वाली हिंसा मानव इतिहास में होने वाली किसी भी हिंसा की तुलना में बहुत ज्यादा भयंकर है। अब तो हिंसा का चलन सा हो गया है। राजस्थान के उदयपुर में जो हुआ,उसके बारे में कोई लिखे भी तो क्या ?… चैतन्य नागर जी की , लेखनी चली पर कई सवालों के घेरे में लाकर जनमानस को संवाद करने पर विवश करती हुई।भारत को भारत बनने की कवायद के साथ…आगे क्या होगा …आइये जानते हैं,कि उबलती हुई कढ़ाही में क्या उबल रहा है? …Athour
उदयपुर में हत्या करने वाले दो लोग, उसका विडियो प्रसारित करने वाले समर्थक कहीं से भी इस देश के बारे में चिंतित नहीं| उनके मन-मस्तिष्क को विष से धो डाला गया है| एक काल्पनिक जन्नत और वहां मिलने वाली हूरों की कल्पना ने उनको अंधा कर दिया है| उन्हें अपनी और अपने परिवार की फ़िक्र नहीं, वे इस देश और दुनिया की क्या फ़िक्र करेंगे! जिस मजहब के अनुसार मानव मस्तिष्क का विकास आज से चौदह सौ साल पहले ही शिखर पर पहुँच चुका है, और अब उसमें और अधिक विकास की, सवाल करने की कोई संभावना नहीं, उसके अंधभक्तों से क्या उम्मीद की जा सकती है| नयूरोप्लास्टिसीटी की वैज्ञानिक खोजों से उनका कोई संबंध ही नहीं| यह बात सिर्फ किसी ख़ास मजहब के लोगों के लिए नहीं, बल्कि तथाकथित उदार और समावेशी हिन्दू धर्म पर भी लागू होती है जिसके कई समर्थकों ने सवाल करना, संवाद करना छोड़ दिया है|
देश के दुश्मन ऐसी ही घटनाओं के इन्तजार में बैठे रहते हैं| इन घटनाओं को लेकर में देश-विदेश से निंदाओं की बौछार होने लगती है| भारत सांप्रदायिक उपद्रव की कढ़ाई है, यह बात इस तरह की घटनाओं से ही फैलती हैं| इसके दूरगामी परिणाम समूचे देश को ही झेलने पड़ते हैं| कारोबारी हमेशा एक शांत और स्थाई वातावरण चाहते हैं, जिसमें उनका निवेश सुरक्षित रहे| वे अशांत माहौल नहीं चाहते| इस तरह की घटनाएँ उन्हें देश में निवेश करने से रोकती हैं| क्या उदयपुर की घटना से इस देश में, सत्तारूढ़ दल में, तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों में किसी नई समझ का उदय होगा| ये सभी इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं| इस देश के वामपंथी भी अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते क्योंकि उन्होंने भी मौका मिलते ही धर्म का उपयोग/दुरुपयोग किया है| समूचे देश के उत्थान में किसी भी दल की रूचि नहीं| सभी अपने अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए राजनीति कर रहे हैं|
इस देश के हर समझदार नागरिक को यहाँ के राजनीतिक दलों के रवैये पर शर्म आती है, यहाँ के धार्मिक गुरुओं, मुल्लों, पादरियों पर शर्म आती है| वे शायद भय या अपनी सुरक्षा की चिंता करते हुए इनके खिलाफ बोल नहीं पाते, या बोलना नहीं जानते| यदि सरकार के साथ देश के सभी वर्गों ने इस संबंध में गंभीरता से विचार नहीं किया और सौहार्द्र का वातावरण तैयार करने में अपना योगदान नहीं दिया, तो भारत साम्प्रदायिक घृणा की उबलती हुई कढ़ाई के रूप में पूरी दुनिया में विख्यात हो जाएगा| इस दिशा में हम पहले ही कई कदम बढ़ा चुके है। चैतन्य नागर