लुटते लोकतंत्र पर क्यों खामोश हैं ईडी व सीबीआई
महाराष्ट्र में लोकतंत्र का हो रहा चीरहरण,,धृतराष्ट्र - दुःशासन की भूमिका में हैं कौन ?
मुंबई – भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। लेकिन अब यही लोकतंत्र मजाक बन गया है। महाराष्ट्र में पोलिटिकल गेम का मैच गुजरात के शहर सूरत में खेला जा रहा है और उसके रेफरी बने हैं एकनाथ शिंदे। जी हाँ! ये वही एकनाथ शिंदे जो महाराष्ट्र शिवसेना सरकार में बतौर शिवसेना विधायक मंत्री हैं। इन सबके पीछे है सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का गेम । अचानक से शिंदे का तथाकथित हिंदुत्व प्रेम जाग जाता है और विधायक पहुंच जाते हैं भाजपा समर्थित गुजरात सरकार के शहर सूरत में। जहां इन्हें एक आलीशान होटल में कैद होना बताया जाता है।लोकतंत्र व जनता के विश्वास पर प्रहार- लोकतंत्र की आत्मा जनता के विश्वास पर कुठाराघात करते हुए जब चुने हुए विधायक निर्वाचित पार्टी की विचारधारा से इतर हो जनता का विश्वास तोड़ दूसरे दल के फेंके हुए पांसे में फंस जाते हैं तब बड़ा सवाल खड़ा होता है। यह सवाल जनता के विश्वास पर कुठाराघात है। इस वक्त महाराष्ट्र में लोकतंत्र का चीर हरण हो रहा है। अचानक से शिंदे का विश्वास शिवसेना से उठ जाता है और वह पहुंच जाते हैं सूरत,जहां भाजपा की सरकार है। दलबदल करने को तैयार निर्वाचित विधायक दलबदल कर जनता से धोखा करने तैयार हैं। जिस पार्टी की विचारधारा से सहमत होकर जनता ने इन्हें वोट किया ,जिताकर मंत्री बनाया । आज वही विचारधारा इनके लिए विरोधी नजर आने लगी। उद्धव ठाकरे की सरकार के मंत्री व विधायक अब उसी उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपना जहर उगलने लग गए जहां से इन्हें दूध मिलता था। यह खिलाफत उद्धव से नही ,शिवसेना से नहीं, बल्कि उस जनता से है जिसने इन्हें चुनकर लोकतंत्र के मंदिर में भेजा। क्या महाराष्ट्र की जनता को इन्हें माफ करना चाहिए?कतई नही,जब तक जनता ऐसे नेताओं को माफ करती रहेगी तब तक यह छलावा जनता के साथ चलता रहेगा।
देख तमाशा कुर्सी का-
सत्ता की लोलुपता में खेला जा रहा खेल भी एक सबसे बड़ा गुनाह है।जिस पर देश की शीर्षस्थ जांच एजेंसियों को संज्ञान लेना चाहिये। क्योंकि खरीद फरोख्त की राजनीति देश मे बड़ा गुनाह है,जुर्म है। इस पर सीबीआई व ईडी जैसी संस्थाओं की निगाह होना जरूरी है। यहां यह सवाल उठना लाजिमी हो जाता है कि जब भी सरकारें मध्यावधि में गिराई जाती हैं तब केंद्रशासित सत्ता के पक्ष वाली सरकार के राज्य में ही विधायक क्यों शरण लेते हैं। याद करें,जब मध्यप्रदेश की कमलनाथ की सरकार के साथ साजिश की गई थी तब भी विधायक कहाँ छुपे थे,हरियाणा में। जहां तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार के विपक्ष वाली सरकार थी। और अब जब महाराष्ट्र के शिवसेना व सहयोगी दल की सत्ता पर संकट आया है ,तब महाराष्ट्र के विधायक कहाँ शरण लिए हैं गुजरात मे,यहां भी महाराष्ट्र सरकार के विपक्षी पार्टी की सरकार है। महाराष्ट्र से लगा सीमावर्ती राज्य छत्तीसगढ़ भी तो है वहाँ ये विधायक क्यों नही गए ? जरा गौर करें,आखिर ये भारतीय जनता पार्टी की सरकार वाली जगह ही क्यों चुनते हैं,जब इन्हें सरकार गिरानी होती है तो। खेल तो समझ अब आ ही गया होगा कि क्या है,और इसके पीछे का गेम मेकर व चेंजर कौन है? अब यही लोकतंत्र मजाक बन गया है।
हेराल्ड व महाराष्ट्र ..दिल्ली बड़ा या गुजरात–सवाल करे तो कौन?
कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी को लुटेरा ठहराने का तमाम बंदोबस्त हो रहा है। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो अदालत का आदेश आने से पहले ही ऐलान कर दिया है कि कम से कम 15 साल की जेल होगी। और सुझाव भी दे डाला है कि राहुल बचना चाहते हैं तो विदेश भाग जाएं…। यह मामला नेशनल हेराल्ड नामक समाचार पत्र की मिल्कियत और संपत्ति को अवैध तरीके से हथियाने का बताया जा रहा है। या यूं कहें कि ऐसा आरोप लगाया गया है। दोनों इस मामले में जमानत पर हैं। और केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी यानी इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट अर्थात आर्थिक प्रर्वतन महानिदेशालय इसमें जांच कर रही है। कांग्रेस के कुछ नेताओं सहित पार्टी के तत्कालीन कोषाध्यक्ष स्व मोतीलाल वोरा को भी आरोपी बनाया गया है। राहुल गांधी से घंटों पूछताछ का दौर जारी है। उधर, कांग्रेस का कहना है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस समाचारपत्र को जीवनदान देने के लिए ही कांग्रेस ने इसे कर्ज दिया और इसके प्रबंधन में आवश्यक परिवर्तन किया। इसकी चल-अचल संपत्ति को राहुल-सोनिया के नाम नहीं किया गया। बल्कि दोनों इसके बोर्ड में 72 फीसद के अधिकारी बनाए गए। कांग्रेस का तर्क है चूंकि यह एक गैर लाभकारी इकाई है लिहाजा इसकी संपत्ति पर किसी पदाधिकारी का स्वामित्व हो भी नहीं सकता है। बहरहाल, भाजपा ने इसे ढाई हजार करोड़ रुपए का गबन करार दिया है। मान लीजिए कि ऐसा आरोप साबित भी हो जाए, लेकिन इसे साबित करने के लिए जिस तत्परता और जिम्मेदारी से ईडी काम कर रही है, क्या महाराष्ट्र में विधायकों की संभावित ख़रीद-फरोख्त की रोकथाम ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों का काम नहीं है? क्या केंद्र सरकार को महाराष्ट्र में विधायकों की ख़रीद-फरोख्त का खुला खेल अथवा इसका संदेह दिखाई नहीं देता? महाराष्ट्र में जो घोटाला हो रहा है, उसके आगे नेशनल हेराल्ड मामला कुछ भी नहीं है। यहां तो सीधे सीधे लोकतंत्र को ही खुलेआम लूट कर हजम कर जाने की तैयारी है। मीडिया यह सवाल क्यों नहीं उठाता है? जनता के दिमाग में यह सवाल क्यों नहीं कौंधता है? लोकतंत्र इसी तरह लुटता रहता है और लुटेरा सरकार बन बैठते हैं। इस तरह की लूट को, विधायकों की ख़रीद-फरोख्त को, दलबदल कानून जैसा एक और सख्त कानून लाकर समाप्त किए जाने की मांग क्यों नहीं उठाई जाती है?
एकनाथ शिंदे और उनके साथी विधायक जिस समय शिवसेना के टिकट पर जनता से वोट मांग रहे थे, उस समय शिवसेना और भाजपा में 36 का आंकड़ा था, बावजूद इसके जनता ने उन्हें वोट दिया। यानी उन्हें वोट देने वाली जनता भी तब भाजपा से सहमत नहीं थी, लिहाजा शिवसेना के नाम पर शिंदे और अन्य शिवसेना उम्मीदवारों को वोट दिया। अब शिवसेना को छोड़कर भाजपा के पाले में बैठ जाने का इन विधायकों को कितना अधिकार है? कम से कम उस जनता ने तो इन्हें यह अधिकार नहीं दिया था, जिसने इन्हें शिवसेना के नाम पर वोट दिया था। क्या इसे जनता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जाए? क्या इसे जनमत की अवेहलना नहीं आंका जाए? यदि विधायक बिक रहे हैं, तो क्या इसे आर्थिक अपराध नहीं माना जाए? जनता को मीडिया की तरह मूक दर्शक बने रहने की आदत हो चली है? सवाल करे तो कौन?