लखनऊ

किस-किस से मांगे क्षमा,अपने आपको मानव समझें तो मांगे क्षमा

किस किस से मांगे क्षमा ?

वर्तमान समय मे व्यक्ति संकुचित होता जा रहा है। डिजिटल जमाने मे व्यवहारिक मापदंड सिकुड़ से गये हैं। मानव जीवन सभी से मिलकर रचा गया लेकिन आज जिस जिस तत्व से हमारा निर्माण हुआ है यानी मानव बना है उसी का दोहन करने में पीछे नही बल्कि सबसे आगे हैं। प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण ही प्राकृतिक आपदा के माध्यम बने। मन यह सब जानता तो है लेकिन मानता नही। इस तड़प और मानवीय संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए वर्षा वर्मा ने

वर्षा वर्मा जिनने अपने मन की बात लिखी ,किस-किस से मांगे क्षमा

प्रकृति,अपने चारों ओर के वातावरण और खुद से हो रहे छल के लिए माफी मांगने व मानवता को राह दिखाने की कोशिश की है। किस से किस से मांगे क्षमा-

प्रकृति माँ से : जिसे हम लगातार नष्ट करते जा रहें है…
पर्वतों से : जिन्हें हम लगातार जमींदोज़ करते जा रहें है…
वृक्षों से : जिन्हें हम अपनी जरूरतों के लिए काटने से नहीं हिचकते…
नदियों से : जिन्हें दूषित करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी, लगातार खनन करके उनका शोषण कर रहें हैं…
वायु से : जिससे हमारा जीवन चलता है उसे प्रदूषित करते चले जा रहें हैं…
जल से : जो हमारे शरीर का सत्तर प्रतिशत हिस्सा है, उसको दूषित करके…
जंगल से : जिन्हें हम लगातार काटते चले आ रहें हैं…
वन्यजीवों से : जिनका हम भक्षण करते आ रहें है…
पक्षियों से :जिनके पेड़ पर बने घोसलों को गिराते चले आ रहें हैं…
उन प्राणियों से : जिन्हें हम रात्रि में ठीक से विश्राम नहीं करने दे रहे अत्यधिक प्रकाश प्रदूषण करके…
इंसानियत से : जिससे हम लगातार दूर होते जा रहें है…
सत्य से : जिसे हम त्याग रहें हैं…
धर्माचरण से : जिसका हम अनुसरण नहीं कर पा रहे…
सहृदयता से : जिसे हम खोते चले जा रहें हैं…
बच्चों से : जिनका बचपन हम ख़त्म करते जा रहें हैं…
और खुद से भी : क्योंकि हम खुद को खुद से दूर कर रहें हैं

 

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