Uncategorizedदेश

शिक्षक दिवस विशेष : राम के अधीर हो उठने की नहीं बल्कि धैर्यता की पराकाष्ठा ही असली शिक्षा है,शिक्षा ही शक्ति है,शिक्षा की प्रासंगिकता राम के रूप में आज और कल भी

आज जरूरत है चतुर्दिक संदीपनी व बाल्मीकि व गुरु वशिष्ठ की शिक्षानीति की,क्या ऐसा हो पायेगा ? स्वच्छ शिक्षा स्वस्थ समाज के निर्माण की शिक्षा व चतुर्दिक शिक्षकों की है आवश्यकता भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए..

आज शिक्षक दिवस है,राष्ट्र के सभी शिक्षकों(गुरुओं) को बधाई व शुभकामनाएं! और इसी क्रम में देश की पुरातन शिक्षकों व शिक्षानीति तथा आज की शिक्षानीति व शिक्षकों पर यदि नजर दौड़ाई जाय तो धरती और आकाश सा भेद समझ मे आता है। पहले की शिक्षा सदाचार,आत्मबल,दयालुता,गंभीरता, समाज निर्माण,धर्मपरायण व आज्ञाकारी नीति पर निर्धारित थी और वर्तमान शिक्षानीति पैसा,चाटुकारिता,विभेद,अनैतिकता,मशीनीकरण, उदण्ड,राजनीतिक चातुर्य और दंभ कुटिलता पर टिकी है। पहले त्याग,समर्पण और राष्ट्रनीति पर बलवती थी आज इन गुणों से विरक्त महज दिखावेपन व चमक धमक पर केंद्रित है पहले विशाल हृदयी,परोपकारी गुणों के विकास को वृहद करने की शिक्षा थी आज स्वहित पर केंद्रित शिक्षा है। फिर भी समयानुसार विभेदीकरण शिक्षानीति पर शिक्षकों की अपनी मौलिकता लिए हुए है। शिक्षक लाचारी व बेवसी के शिकार हैं। महज सिर्फ आज के दिन शिक्षकों की याद आती है,बेमन से उनको सम्मानित कर एक महज औपचारिकता निभाकर उन्हें कल से सरकारी नीतियों पर लगा दिया जाएगा सरकार की नीतियों के प्रचारक व तंत्र के भ्रामक प्रचार में। पहले के गुरु आज्ञादायी होते थे आज आज्ञापालक बन गए हैं। इसी गुरुकुल व शिक्षकों से शिक्षा पाकर त्रेता युग मे मर्यादापालक भी शिष्य हुए और बीते समय के तत्कालीन मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम कहलाये,भगवान बन कर पूजे गए और पूजे जा रहे हैं।लीलाधर भगवान बने श्री कृष्ण भी गुरुकुल व शिक्षकों के ही शिक्षा के ही कारण नीति निपुण ज्ञानंदर्शी भगवत गीता के प्रवाहक उ उपदेशक बने। आज की शिक्षा राजनीतिक गुलाम होकर रह गई है। हालांकि समयानुसार दिग्भ्रमित मशीनीकरण के इस युग मे नैतिकता का ज्ञान प्रकाश पाखंड के धुंध से घिरी हुई है। ऐसे में एक नजर डालते हैं शिक्षा के प्रतिमूर्ति व ज्ञानधरा के महान शिक्षाविद कविकुल के महान कविसंत सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी के ‘राम की शक्ति पूजा’ के राम पर! पहले राम किताबो तले दबते नही थे आज के शिष्य पर बोझिल है किताबो का बंडल.
वर्तमान परिदृश्य माँ सरस्वती के वरदायी पुत्र निराला केराम की शक्ति पूजा’ में वर्तमान को धारण करने की अद्भुत क्षमता है। ज्यों-ज्यों समय बीत रहा है इसकी प्रासंगिकता घटने के बदले बढ़ती ही जा रही है। कविता के आरंभ में अपने ही रक्त से सने श्रीराम की पराजित सेना के चुपचाप,सिर झुकाए शिविरों में लौटने का वर्णन है। चारों तरफ अमावस्या का अंधेरा,पराजय का सन्नाटा है। आकाश अंधकार उगल रहा है,हवा का चलना रूका हुआ है,पृष्ठभूमि में स्थित समुद्र गर्जन कर रहा है,पहाड़ ध्यानस्थ है और मशाल जल रही है। यह परिवेश किसी हद तक राम की मनोदशा को प्रतिबिंबित करता है,जो संशय और निराशा से ग्रस्त है। सारी परिस्थितियाँ उनके प्रतिकूल हैं,बस उनकी बुद्धि (मशाल) ने अभी तक उनका साथ नहीं छोड़ा है और वह प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करती हुई अभी भी जागृत है।
स्थितप्रज्ञ राम को भी उनके मन में उत्पन्न संशय बार-बार हिला दे रहा है। रह-रहकर उनके प्राणों में बुराई और अधर्म की साक्षात मूर्ति रावण की जीत का भय जाग उठता है। इन क्षणों में राम को शक्ति की वह भयानक मूर्ति याद आती है जो उन्होंने आज के युद्ध में देखी थी। राम ने रावण को मारने के लिए असंख्य दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया,लेकिन वे सारे-के-सारे बुझते और क्षणभर में शक्ति के शरीर में समाते चले गए जैसे उन्हें परमधाम मिल गया हो। राम ने अपनी स्मृति में यह जो दृश्य देखा तो अतुल बलशाली होते हुए भी वे अपनी जीत के प्रति शंकालु हो उठे और उन्हें लगा कि शायद वे अब अपनी प्रिया सीता को छुड़ा ही नहीं पाएंगे-
“धिक जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका।”
राम परेशान हैं यह सोंचकर कि ‘अन्याय जिधर है उधर शक्ति है’। ऐसे में अन्याय और अधर्म के साक्षात प्रतीक रावण को कैसे पराजित किया जाए-
“लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक,
रावण अधर्मरत भी अपना,मैं हुआ अपर
यह रहा शक्ति का खेल समर,शंकर,शंकर!”
राम के नेत्रों से इस समय चुपचाप अश्रुधारा बह रही थी। वे उदास थे परन्तु पराजित नहीं थे और बार-बार उनकी भुजाएँ फड़क उठती थीं-“हर धनुर्भंग को पुनर्वार ज्यों उठा हस्त”। राम का एक मन और था जो अभी तक भी चैतन्य था-
“वह एक और मन रहा,राम का जो न थका
जो नहीं जानता दैन्य नहीं जानता विनय।”
तभी जांबवान राम को शक्ति पूजा के लिए प्रेरित करते हैं। वे राम को शक्ति की मौलिक कल्पना करने के लिए कहते हैं-“शक्ति की करो मौलिक कल्पना,आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर।” राम सिंहभाव से शक्ति की आराधना करते हैं और शक्ति अर्थात् भगवती दुर्गा से विजय होने का वरदान प्राप्त करते हैं। यहाँ निराला ने राम की मौलिक कल्पना में सिंह अर्थात् शक्तिवान को देवी के जनरंजन-चरण-कमल-तल दिखाया है अर्थात् उनके मतानुसार शक्ति का प्रयोग हमेशा जनहित में ही होना चाहिए।
प्रत्येक युग की तरह वर्तमान भारत में भी धर्म-अधर्म का युद्ध अनवरत चल रहा है। आज के भारत में भी शक्ति अधर्म की तरफ है और आज के भारत में भी सत्यवादी और ईमानदार लोग शर्मिंदा,पराजित और निराश हैं।

आज के भारत में नेतारूपी रावण सत्ता के अहंकार में जन-गण-मन के नायक राम को सड़क पर भटकनेवाला साधारण मानव समझने की भूल कर रहा है और दंभपूर्वक चीख-चीखकर कह रहा है कि वह सड़कछाप लोगों अथवा नाली के कीड़ों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देगा।
कभी त्रेता के रावण ने भी राम को तुच्छ व निर्बल तपस्वी समझ लेने की गलती की थी। वही भूल आज का रावण भी कर रहा है लेकिन प्रश्न यह भी है कि क्या आज का राम कभी इतनी शक्ति अर्जित कर पाएगा कि वह रावण (अधर्म व भ्रष्टाचार) का समूल नाश कर सके? क्या उसमें रावण द्वारा शक्ति की की जा रही अराधना का उत्तर अपेक्षाकृत दृढ़ अराधना से देने की ताकत है,क्षमता है? आज का रावण भी अत्यंत मायावी है और वह निश्चय ही साम-दाम-दंड-भेद चारों युक्तियों का दुरूपयोग करेगा। वह कभी झूठे आरोप लगाएगा तो कभी सांप्रदायिक और जातीय कार्ड खेलेगा। अव देखना है कि हमारे राम के तरकश में क्या ऐसे तीर मौजूद हैं जो रावण के इन विषबुझे तीरों को काट सकें। प्रत्येक युग का युगधर्म तो यही कहता है कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं। तो क्या निकट-भविष्य में हमारे राम की जीत होनेवाली है और क्या निकट-भविष्य में राम-राज्य एक मिथक मात्र नहीं रह जानेवाला है या एक बार फिर रावणी शक्तियों की ही जीत होगी,भारतमाता का उद्धार नहीं हो सकेगा और रावण-राज ही चलता रहेगा? हमारा वर्तमान और भविष्य सबकुछ राम की अराधना पर निर्भर करता है और निर्भर करता है इस बात पर भी कि हमारे राम में कितनी मानसिक दृढ़ता है,कितनी संघर्षशीलता है और कितना पराक्रम है। त्रेता में तो वानर-भालुओं ने राम की तन-मन-धन से सहायता की थी क्या इस कलियुग में राम आम जनता की सेना बना पाएंगे और क्या खोज पाएंगे और प्राप्त कर पाएंगे हनुमान,सुग्रीव,अंगद जैसे निष्ठावान सेनानायकों की सेवा को? मैं इस समय वर्तमान में लिख रहा हूँ और चूँकि समय का पहिया गोल है इसलिए भविष्य हमेशा की तरह मेरी दृष्टि से ओझल है। मैं तो बस इतना ही देख पा रहा हूँ कि मेरे आज के भारत का राम भारत के आम आदमी की शक्ति की मौलिक कल्पना करने और फिर उसके आधार पर शक्ति की दृढ़ अराधना करने में लीन है-
या आमजनता सर्वनेताषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै,नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो नमः।

Khabar Times
HHGT-PM-Quote-1-1
IMG_20220809_004658
xnewproject6-1659508854.jpg.pagespeed.ic_.-1mCcBvA6
IMG_20220801_160852

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button