रायपुर – निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि सब गुन होत प्रवीन, पै निज भाषा ज्ञान बिन,रहत दीन के हीन ।। भारतेंदु हरिश्चंद्र की इस पंक्ति को अब छत्तीसगढ़ राज्य में आत्मसात किया जा रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य के स्कूलों में स्थानीय बोली भाषा पढ़ाये जाने को लेकर निर्देश जारी कर दिया है।
अब स्कूलों में विद्यार्थियों को सप्ताह में एक दिन छत्तीसगढ़ी भाषा व बस्तर सरगुजा आदिवासी बाहुल्य इलाकों में आदिवासी क्षेत्रीय भाषा बोली में पढ़ाई कराने का फरमान सुना दिया है।
राज्य सचिवालय के जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों ने इसकी जानकारी मीडिया में साझा की। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि राज्य के स्कूलों में अब स्थानीय बोली भाषा को शामिल किया जाएगा इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है। मुख्यमंत्री के आदेशानुसार सप्ताह में एक दिन स्कूली बच्चों को अपनी भाषा मे पढ़ने का मौका मिलेगा,विद्यार्थी अपनी भाषा को और अच्छे से समझ सकेंगे। पाठ्य सामग्री तैयार किये जाने की जानकारी अधिकारियों ने दी है। सीएम बघेल के अनुसार अब स्कूलों में छत्तीसगढ़िया भाषा की एक दिवसीय कक्षायें चलेंगी जो सप्ताह में एक दिन के लिए निर्धारित हुई है। इससे विद्यार्थियों में अपनी भाषा को लेकर बढ़ावा मिलेगा और छात्रों में पढ़ाई के प्रति लगाव भी होगा।
आत्मानंद स्कूलों में संस्कृत व कम्प्यूटर की पढ़ाई अनिवार्य- महात्मा गांधी के अनुसार,”शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों का शारीरिक,मानसिक और बौद्धिक विकास कर सके” इसी नवाचार को बढ़ावा देने कांग्रेसी छत्तीसगढ़ सरकार ने अब क्षेत्रीय भाषा,संस्कृत व कम्प्यूटर ज्ञान को बढ़ावा देने एक कदम आगे बढ़ाया है।
सीएम भूपेश ने आत्मानंद अंग्रेजी विद्यालयों में भी संस्कृत भाषा व कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य किया है। ताकि अंग्रेजी माध्यमों के विद्यार्थियों को भी संस्कृत भाषा का ज्ञान हो सके तथा संस्कृत को समझ सकें। कम्प्यूटरीकृत समय मे कम्प्यूटर का ज्ञान आवश्यक है,इससे डिजिटल के प्रति बच्चों में जागरूकता बढ़ेगी। छत्तीसगढ़ी भाषा के पक्षधर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आखिरकार अपनी मातृभाषा व स्थानीय बोली को बढ़ावा देने का निर्णय ले ही लिया,इससे न सिर्फ बच्चों के बल्कि उनके पालकों व छत्तीसगढ़ी मूल के स्थानीय लोगों में भी अच्छा सन्देश गया है। लोग खुश हैं कि उनकी अपनी बोली भाषा को बच्चे समझेंगे और अधिक बारीकी व शुद्धता से ज्ञान अर्जित करेंगे, इससे स्थानीय भाषा बोली को बढ़ावा मिलेगा। धीरे से सरकारी काम काज में भी इसे लागू किया जा सकता है।