
दिल्ली – आजादी से लेकर आज तक किसी भी राजनैतिक पार्टी ने गाय के सम्मान को लेकर कोई कदम नही उठाया और न ही गो हत्या को बन्द करने की अहमियत समझी। यह बात और स्पष्ट हो गई जब दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले गो प्रतिष्ठा निर्णायक दिवस के कार्यक्रम को रद्द करने का मामला सामने आया है। और यही नहीं बल्कि शंकराचार्य को पुलिस बल के द्वारा रोका गया उनके सवालों का जबाब भी नही दिया गया। यह मात्र एक धर्माचार्य की बात नहीं बल्कि हिंदुस्तान में करोड़ों हिंदुओं के आवाज को दबाने की बात है जब उनके प्रश्नों को उत्तरित नही किया गया।
पुलिस बल ने गांव को बना दिया छावनी,की नजर कैद की कोशिश –
ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज की अगुवाई में चल रहे गो प्रतिष्ठा आंदोलन को दिल्ली में विफल करने की बखूबी साजिश की गई। रामलीला मैदान में 17 मार्च को एक देशव्यापी गो प्रतिष्ठा प्रतीक्षा रैली का शंखनाद होना था जिसमें लाखों गो भक्त इकट्ठे होने थे। रामलीला मैदान की अनुमति भी मिल गई थी लेकिन सरकार को जब यह भनक लगी कि लाखों लोग दिल्ली में इकट्ठे हो रहे हैं और शंकराचार्य की उपस्थिति में यह कार्यक्रम सफल होने जा रहा है तो सबसे पहले दी गई अनुमति को रद्द कर दिया गया। उसके बाद उस जगह को पुलिस छावनी के रूप में तब्दील कर दिया गया जहां पूज्य शंकराचार्य ठहरे हुए थे। उस गाँव को पूरी तरह से पुलिस बल के द्वारा सील कर दिया गया। यह इतिहास में धर्म को परास्त करने का पहला ऐसा कदम था जब शंकराचार्य को नजर कैद करने की कोशिश की गई।
शंकराचार्य को रोकने हर संभव किये गए प्रयास- ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बेबाक एवं सत्य व शास्त्रसम्मत बातों को कहने के लिए जाने जाते हैं। बिल्कुल मुखर होकर सत्य बात को कहते हैं जिनकी अपनी एक पहचान है। लेकिन आजकल सत्य को सुनने व पचाने की शक्ति न तो सत्ता में रह गई है और न ही किसी राजनैतिक पार्टियों में। शंकराचार्य जब दिल्ली के तमाम उन राजनैतिक पार्टियों के दफ्तरों में जाकर गौ के पक्ष में होने की बात को स्पष्ट करना चाहा और पार्टियों से उनकी मंशा जाननी चाही तो किसी के पास उनके दो टूक सवालों का जबाब नही था। पुलिस ने बेरिकेटिंग कर शंकराचार्य व उनके साथ जा रहे हजारों गौ भक्तों का रास्ता रोकने की पूरी कोशिश की।
राजनैतिक दलों के पास नहीं था कोई उत्तर – कहने को तो सभी पार्टियां चुनाव में वादे खूब करती हैं धर्म को बचाने व गाय को कत्लेआम से बचाने की लेकिन जब सनातन के शीर्षस्थ धर्माचार्य शंकराचार्य ने इनसे इनकी मंशा स्पष्ट करने की बात कही तो सभी अगल बगल झांकने मजबूर दिखे। चाहे वह सीपीआई हो,आम आदमी पार्टी हो,कांग्रेस हो,सपा हो या बीजेपी हो सभी के रंग एक जैसे थे। हद तो तब हो गई जब उनका कारवां सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के कार्यालय पहुंचा। वहां भारी मात्रा में तैनात पुलिस बल ने 50 मीटर दूर ही उनके काफिले को रोक दिया और कोई भी जिम्मेदार दल का नेता या पदाधिकारी उनसे मिलने नही गया। यह वही पार्टी है जो धर्म के नाम पर और गाय के नाम पर वोट लेती है वादे करती है और सत्ता का सुख भोगती है। लेकिन जब धर्माधीश खुद पहुंचते हैं यह जानने की गाय पर उनकी राय क्या है तब दफ्तर के गेट बंद कर दिए जाते हैं। शंकराचार्य का मत बस इतना ही था कि पार्टी यह स्पष्ट कर दे की वह गौ हत्या चाहती है या गाय को बचाना चाहती है। लेकिन किसी ने दो टूक सवालों का जबाब नही दे पाए। करोड़ों करोड़ सनातनियों के पक्ष व हित में बात कर रहे शंकराचार्य के सामने हिम्मत नही जुटा सके कि गाय की बात पर अपनी राय दे सकें पार्टियां।
सरकार की मंशा हुई उजागर – शंकराचार्य ने कहा कि गाय की हत्या रूकवाने और गो माता को राष्ट्र माता की प्रतिष्ठा दिलाने की बात हम करने गए थे लेकिन सत्तादल के पास इसका कोई जबाब नही है। एक व्यक्ति मिलने आया जो कार्यालय का कर्मचारी था,उसने इतना कह कर पल्ला झाड़ लिया कि वह उनकी बात को ऊपर तक पहुंचा देगा । इससे साफ जाहिर होता है कि बीजेपी के प्रमुख एजेंडे में गाय की हत्या जैसे संवेदनशील मुद्दा उसके लिए मायने नही रखता। देश के मौजूदा गृह मंत्री का एक वीडियो वायरल हुआ था जब वह बिहार में यह कहते हुए सुने व देखे गए थे कि यह सीता माता की नगरी है यहां गाय का कत्ल नाइंसाफी है हम गाय को किसी भी हालत में कटने नहीं देंगे,लेकिन दुख इस बात का है कि गायें काटी जा रही हैं। धरती गाय के रक्त से लाल हो रही है। अभी तक उनके इस बयान में सच्चाई देखने को नही मिली,गौ हत्या नही प्रतिबंधित की गई। इससे साफ झलकता है कि कथनी और करनी में काफी अंतर है। मोदी सरकार जो कि हिन्दू रक्षक सरकार कही जाती है वह क्यों इतनी निष्ठुर हो गई है जब हिंदुओं की वेदमाता को सम्मान व सुरक्षा नही दे पा रही है। सनातन की मूल कही जाने वाली गौ की रक्षा क्यों नही कर पा रही है। सवाल का जबाब तो देना ही चाहिए। सवाल भी सत्ता से करना लाजमी है और उत्तर की चाह भी रखना ।
