रांची – एक दिन पहले ही झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और आरजेडी के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात की थी. विधायकों ने उनके कार्यालय की गतिविधियों पर सवाल उठाए थे.
यूपीए विधायकों और नेताओं ने कहा था कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द किए जाने की कथित खबरों को लेकर राजभवन की चुप्पी संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा कर रही है.
न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक राज्यपाल को पत्र लिखने वाले विधायक ने कहा, “वे हैरान हैं कि 25 अगस्त के बाद से मीडिया में राज्यपाल के दफ्तर के सोर्सज के हवाला देकर चलाई जा रही हैं जिसमें दावा किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधायकी को रद्द करने के लिए संविधान के आर्टिकल 192 के तहत चुनाव आयोग से सुझाव ले लिया गया है.”
विधायक ने बताया कि खबरों में ये भी दावा किया जा रहा है कि कभी भी हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द की जा सकती है.
वहीं मुख्यमंत्री ऑफिस ने बयान जारी कर बीजेपी पर चुनाव आयोग की रिपोर्ट ड्राफ्ट करने का आरोप लगाया है.
हेमंत सोरेन पर क्या है आरोप
हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री व खनन मंत्री रहते हुए रांची ज़िले की अनगड़ा स्थित पत्थर की एक खान का आवंटन अपने नाम करा लिया. बीजेपी ने इसकी शिकायत राज्यपाल से की थी, जिसे राज्यपाल ने चुनाव आयोग को भेजकर उनका मंतव्य मांगा था.
यह प्रकरण पिछले फ़रवरी महीने से चल रहा है. इस मामले में लोक जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9-ए के तहत सुनवाई की जा रही थी.
यह सुनवाई इसी महीने पूरी की गई है. हालांकि, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उस माइंस से कोई खनन नहीं कराया और वे अपनी लीज भी सरकार को सरेंडर कर चुके हैं.
उन्होंने साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के शपथ पत्र में भी इस माइंस का ब्योरा दिया था. उन्होंने इस माइंस के लिए जब आवेदन किया था, तब वे सियासत में नहीं थे.