दिल्ली- देश की राजधानी डेंजर जोन की लिस्ट में शुमार होती जा रही है.यहां की हवा में सांस लेना मुश्किल होने लगा है.वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ने से लोगों को घुटन महसूस होने लगी है.दिल्ली एनसीआर में सुबह से ही वायुमंडल में धुंध छा जाता है.जिससे मौसम में उमस व गर्मी बनी रहती है. नवम्बर माह में जहां ठंड आ जाने से लोग कम्बल व रजाई का प्रयोग करना शुरू कर देते थे वहीं इस बार दिल्ली वाले कूलर-पंखा चला रहे हैं.कारण,मौसम में गर्मी है.दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है.
विगत दिनों से दिल्ली के आसपास क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता काफी खराब हो गई थी,जिसका एयर क्वालिटी इंडेक्स लगभग 300 के भी नीचे आ गया है जिसे खराब स्थिति कहा जाता है.यहां अभी हवाओं की गुणवत्ता में कोई खास सुधार नही हुआ है.हालांकि,कल हवा का कुछ तेज असर देखने को मिला था जिस पर मौसम वैज्ञानिकों व केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की माने तो अभी दो दिन तक प्रदूषण बढ़ने के आसार नही है,उनका कहना है कि वायु में नमी होने के कारण धूल,धुआं और डस्ट वायुमंडल में नीचे ही वलयाकार रूप में केंद्रित हो जाते हैं,जिससे आकाश और सूर्य की पारदर्शिता धुंधली पड़ जाती है हवाओं का रुख ठंडा न होकर खुश्क हो जाता है.
खेतों में जलने वाली पराली से दिल्ली एनसीआर धुंध व गैस का चैंबर बन गया है.पराली सबसे ज्यादा पंजाब,हरियाणा व मध्यप्रदेश में जलाई जा रही है.उत्तरप्रदेश अब चौथे स्थान पर है जो पराली जलाने की स्थिति स्प्ष्ट करता है.
यदि पराली जलाने के आँकड़ों पर बात करें तो उत्तरभारत के छह राज्यों में सितंबर से अब तक 35 हजार 699 स्थानों पर पराली जलाई गई है.जिसमे यूपी का आंकड़ा कम है. यह सैटेलाइट से जुटाये गए आंकड़े हैं जो पराली जलाने की जगह को चिन्हांकित करता है.पराली जलाने में भारत मे सबसे आगे पंजाब व हरियाणा राज्य हैं.
पराली जलाने वाले राज्य आंकड़ों में वर्षवार-
भारत मे पराली जलाने के मामलों में सबसे आगे पंजाब व हरियाणा राज्य हैं.यदि वर्षवार आंकड़ों की बात करें तो पिछले वर्ष की तुलना में अभी तक राज्यवार आंकड़े जो कि भारतीय कृषि अनुसन्धान द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं,वे निम्न हैं-
राज्य वर्ष 2022 वर्ष 2021
पंजाब 29,400 71,303
हरियाणा 2,530 6,987
मध्यप्रदेश 2,246 8,160
उत्तरप्रदेश 927 4,242
राजस्थान 587 1,350
दिल्ली। 9 4
(यह 15 सितंबर से 5 नवम्बर तक पराली जलाने के मामले हैं,जिन्हें ड्रोन कैमरों द्वारा चिन्हांकित किया गया है)
कारण यह है कि जिन राज्यों में खेती करने वाले जमीदारों की संख्या जितनी ज्यादा है उतना ही धुआँ पराली का उठता है उस राज्य में.पंजाब और हरियाणा में बड़े खेतिहर किसान हैं,जो अपने धान की पराली को जलाते हैं. उत्तर प्रदेश में भी कहीं कहीं बड़े किसान हैं परन्तु शासन-प्रशासन का सख्त पहरा कहीं न कहीं इसे कम करता है. और पशुओं के लिए भी पराली को चारे के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है.हालांकि उत्तरप्रदेश में अभी तक सबसे ज्यादा पराली जलाने का आंकड़ा 2018 में देखा गया है,उसके बाद से कम हुआ है.
जाने क्या हो सकते हैं पराली न जलाने के विकल्प-
पराली को जलाने से बचना चाहिए,ताकि वायु प्रदूषण कम हो सके,पराली को खाद व भूसा बनाने वाली मशीनों को बढ़ावा देने की जरूरत है.जिसके लिए भारत सरकार को मशीनों को लगाने की सब्सिडी देनी चाहिए.पराली जलाने से होने वाले नुकसान के प्रति किसानों को निरन्तर जागरूक करते रहना चाहिए.और जुर्माने के अलावा सरकार को चहिए की जो बड़ा किसान है या जिसने पराली नही जलाई उसे ब्लॉक स्तर पर सम्मानित करना चाहिए जिससे लोगों में प्रोत्साहन से जागरूकता और जिम्मेदारी भी बढ़ेगी.
हालांकि पराली जलाने पर कार्रवाई किये जाने का प्रावधान भी है जिसके लिए समिति बनाकर प्रशासन अपने स्तर पर निगरानी भी करता है.कारण बताओ नोटिस जारी कर राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा जुर्माना भी निर्धारित किया गया है.जो किसान पराली जलाते हैं पता चलने पर उन्हें नोटिश जारी कर उनसे जुर्माना भी वसूला जाता है.
दिल्ली में करोड़ों का बजट खर्च हो गया फिर भी हवा प्रदूषित-
यदि देखें तो देश की राजधानी की हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने करोड़ों रुपये फूंके जाते हैं.इसके लिए राज्य व केंद्र दोनों सरकारों की तरफ से करोड़ों का बजट स्वीकृत है.लेकिन महज कागजों पर प्रदूषण साफ हो जाता है,धरातल पर समस्या जस की तस बनी रहती है.हर साल यही बजट बढ़ता है और बजट की तरह धुआँ व प्रदूषण भी.इस बार बजट 266 करोड़ रुपये का है जो वर्ष 2022-2023 के लिए निर्धारित किया गया है. हालांकि पिछले साल की तुलना में प्रदूषण में कुछ गिरावट भी आई है.यह दिल्ली सरकार का दावा है .
दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्री गोपाल राव का कहना है कि,10 वर्ष पहले दिल्ली में प्रदूषण का स्तर ज्यादा था जो कि सलाना स्तर365 एक्यूआई था,अब घटकर 227 हो गया है. आम आदमी पार्टी सरकार ने प्रदूषण स्तर को कम करने का काम किया है.उनका कहना है कि,आई आई टी कानपुर के साथ सरकार ने समझौता कर अनुबंध किया हुआ है ताकि प्रदूषण स्तर को कम किया जा सकेगा.