एक नजर झारखंड की सरकारों पर- कोई पूरा नही कर पाया कार्यकाल?
- झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. मगर एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.
- एक बार तो शिबू सोरेन मात्र दस दिनों के लिए ही मुख्यमंत्री बने थे
- मुख्यमंत्री रहते विधानसभा का चुनाव हारने का भी रिकार्ड उन्हीं का है जब वो रांची के पास तमाड़ सीट से लड़े थे
- 21 साल में झारखंड 11 सरकारें और 6 मुख्यमंत्री देख चुका है
- इसी अस्थिरता के कारण झारखंड में राष्ट्रपति शासन भी
झारखंड/ रांची – सन 2000 में जब अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एन डी ए की सरकार थी तो तीन नए राज्यों का गठन किया गया था.झारखंड,उत्तराखंड और छत्तीसगढ़.बिहार से अलग हुए झारखंड के हिस्से में कुल 81 विधानसभा की सीटें आईं.
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके और वर्तमान में बीजेपी के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी हालांकि अपना कार्यकाल पूरा नही कर पाए थे.दरअसल,उनके गठबंधन में ही शामिल दलों के विधायकों ने बगावत कर दी थी और उनकी जगह अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया गया था। तब से लेकर आज तक सरकारें अस्थिर ही रहीं।
साल 2014 में पहली बार ऐसा हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के रघुवर दास बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर पाए.
अस्थिरता के श्राप के कोप भाजन के शिकार कहीं हेमंत सोरेन भी तो नहीं,क्योंकि हेमंत सोरेन पर आरोप है कि खुद मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने खनन का पट्टा अपने नाम करा लिया,इसलिये उनकी विधानसभा की सदस्यता भी जा सकती है.चुनाव आयोग ने इस पर संज्ञान लेते हुए राज्यपाल को चिट्ठी भी लिखी है.कुल मिलाकर हेमंत के ऊपर कुर्सी जाने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि संख्या बल उनके दल की ज्यादा है,ऐसे में गुंजाइश है कि उनकी जगह उनकी पत्नी सीएम बनाई जा सकती हैं। बिहार के लालू यादव व उनकी पत्नी राबड़ी देवी भी याद की जा रही हैं।
क्या हेमंत सोरेन की सरकार गिर जाएगी
इस पर बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि आंकड़ों के हिसाब से झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास 30 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास 18. इनके पास पूर्ण-बहुमत है.
बीजेपी को इन विधानसभा चुनावों में सबसे कम 18 सीटें मिली हैं जबकि उसके गठबंधन के साथी आजसू पार्टी को 2 सीटें.
उनका कहना है, “सब निर्दलीय विधायकों को मिला भी लिया जाए तो बहुमत नहीं आ रहा है. इसलिए हम कुछ नहीं कर रहे हैं. हम इंतज़ार कर रहे हैं कि राज्यपाल क्या कहते हैं. इसके बाद ही बीजेपी की तरफ से हम कोई स्टैंड लेंगे.”
झारखंड की राजनीति को क़रीब से देखने वाले गौतम बोस को लगता है कि हेमंत सोरेन के सामने एक ही विकल्प बचा है. वो अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना सकते हैं और अगले ढाई साल का कार्यकाल सरकार पूरा कर लेगी.
हरि नारायण सिंह का मानना है कि ये तय दिख रहा है कि हेमंत सोरेन को गद्दी छोड़नी पड़ सकती है और इसी को देखते हुए विधानसभा का विशेष सत्र भी 5 सितम्बर को बुलाया गया है.
हरि नारायण सिंह संभावना जताते हैं कि संभव है कि किसी बड़ी घोषणा के साथ हेमंत सोरेन अपना पद त्याग दें और अपनी पत्नी को कुर्सी पर बिठाकर सत्ता चलाएंगे.
लेकिन गौतम बोस कहते हैं, “इसी राजनीतिक अस्थिरता के कारण जंगल, नदियों और खनिज सम्पदा से भरपूर ये राज्य कभी तरक्क़ी नहीं कर पाया. जबकि छत्तीसगढ़ भी इसी राज्य के साथ अस्तित्व में आया और उस राज्य में तेज़ी से विकास हुआ. ”
गौतम बोस कहते हैं, “लेकिन अस्थिरता की भेंट चढ़ा झारखंड कुछ नहीं कर पाया. यहां की सरकारें कुछ नहीं कर पाईं. मुख्यमंत्री जिस घर में रहते हैं उसमे अविभाजित बिहार के दौर में रांची के संभागीय कमिश्नर रहा करते थे. रांची के हैवी इंजीनियरिंग कॉर्पोरेशन की ज़मीन और भवनों से सरकार चलती रही. राज्य की राजधानी रांची ‘चोक’ यानी पूरी तरह से जाम हो चुकी है.”
उनके अनुसार, “कई बार हुआ कि नई राजधानी बनाई जाएगी. इलाके का चयन भी हुआ. मगर मामला जस का तस रह गया. झारखंड की नयी विधानसभा बनी तो ज़रूर है, मगर एचईसी की ज़मीन पर ही. अब भी मंत्री और अधिकारियों को रहने के लिए एचईसी के ही बंगले दिए गए हैं.”गौतम बोस कहते हैं कि झारखंड एक ‘असफल राज्य’ के रूप में ही काम करता रहा है.