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कुर्सी खतरे में : यह सिंहासन बत्तीसी नही छत्तीसी है,झामुमो को 36गढ़ पर भरोसा,रायपुर से क्या बच पाएगी सोरेन सरकार या होगी उद्धव जैसी हालत? देख तमाशा कुर्सी का

रायपुर/रांचीसच को सच नही कहेंगे तो क्या कहेंगे.जब सच दिखाई व सुनाई देना बंद हो जाता है तब समाज व देश मे लूटतंत्र व अनैतिकता का बोलबाला बढ़ जाता है। बखूबी,इस मौजूदा समय मे कमोबेश यही स्थिति निर्मित हो गई है,तभी भारत के अर्जित लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है और धीरे धीरे अब लोगों का विश्वास भी उठने लगा है। यह हम नही बल्कि सही मायने में देश की हालत बोल रही है। लोकतंत्र की व्यवस्था जनता के द्वार से होकर गुजरती है जिसका निर्माण भी जनता के द्वारा होता है। देश को चलाने की व्यवस्था भी लोकतांत्रिक है परंतु आज लोकतंत्र मजबूर व असहाय दिखता है,क्योंकि लोकतंत्र बिकने लगा है खरीदार इसे कुर्सी की कीमत तय कर खरीदने लग गए। 

हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री झारखंड(प्रोफाइल फ़ोटो)

महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश और अब झारखंड इसकी पुष्टि कर रहे हैं। पंचवर्षीय चुनावी प्रक्रिया का मजाक बना कर रख दिया गया।जो जनतंत्र हमारे गणतंत्र को प्रभावी बनाने का आधार है,वही अब मूकदर्शक बनकर अपने वोट पर चोट का असर देख रहे हैं,दर्द का अनुभव तो कर रहे हैं लेकिन मजहबी भ्रामक मलहमों के कन्फ्यूजन ने उनको शायद कन्फ्यूज्ड कर दिया है। इसीलिए कुर्सी का खेल देखने व नौटंकी के रुपहले पर्दे के खुलने व बन्द होने का तमाशा देख रहे हैं।

हेमंत सोरेन अपने कुछ मन्त्रियों के साथ(फ़ाइल फ़ोटो)

झारखंड में इस वक्त जो चार्टर प्लेन की उड़ाने दिख रही हैं उनका रास्ता छत्तीसगढ़ आता है। कुछ दिनों से झारखंड की हेमंत सरकार पर अचानक से संकट के बादल घिरते हैं और सरकार गिराने तक कि नौबत आ जाती है। कोल आबंटन व खनन लीज के मामले में तथाकथित रूप से फंसे सोरेन को विपक्षी पार्टियों ने अयोग्य करार दिया और राज्यपाल से इनकी विधायकी शून्य करने की सिफारिश कर दी। इधर,सीएम सोरेन ने पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ का सहारा लेते हुए विधायकों को सेफ जोन समझ रवाना कर दिया।

छत्तीसगढ़ से झारखंड लौटे मंत्री सीएम सोरेन के साथ आज फिर से छत्तीसगढ़ पहुंचेंगे. मंत्रीमंडल की बैठक में शामिल होने के लिए मंत्रियों की यह टीम सत्यानंद भोक्ता, आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता, रामेश्वर उरांव और बादल पत्रलेखा बुधवार को झारखंड गए थे.

झारखंड से आए चार्टर्ड प्लेन से सभी मंत्री वहां के लिए रवाना हुए थे. झारखंड सरकार के मंत्री आलमगीर आलम ने कहा कि “झारखंड सरकार अपना काम कर रही है. मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बीजेपी ने क्या किया है आप सब जानते हैं. मुख्यमंत्री को डिसक्वालिफ़ाई कर दिया गया है. इसके बाद जिस तरह से प्रचार किया गया उससे हमें एहतियात के तौर पर रहना पड़ता है. हमें किसी तरह का डर नहीं है. संख्या बल हमारे पास है.”

इस वक्त झारखंड में राजधानी से लेकर गांव कस्बों तक मे सोरेन सरकार की चर्चा हो रही है। झामुमो अपनी सरकार की उपलब्धियों को गाँव गाँव जाकर जिला स्तर के नेताओं ने बताना व गिनाना शुरू कर दिया है। झामुमो के नेताओं का कहना है कि भाजपा जो चाह रही है,उसकी सरकार गिराने की मंशा परिणाम में नही बदल पाएगी। आदिवासियों की अस्मिता व उनके विकास पर पलीता लगाने की भाजपा की नाकाम कोशिश सफल नही होगी। झामुमो के जिलाध्यक्ष राजेन्द्र सिन्हा ने कहा की भाजपा हेमंत सोरेन की विधायकी शून्य करवाने की जो कोशिश कर रही है,वह उसे मंहगा पड़ेगी।सिन्हा ने कहा कि यदि सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द होती भी है तो भी सरकार को कोई फर्क नही पड़ेगा। हेमंत सोरेन तो बरहेट विधानसभा से चुनाव लड़कर,जीतकर पुनः मुख्यमंत्री बन जाएंगे।हालांकि इस वक्त तेजी से झामुमो के कार्यकर्ता सरकार की लोककल्याणकारी योजनाओं की उपलब्धिता को गिनाने में लगे हैं। स्थानीय नेता अशोक का भी यही कहना है कि भाजपा ने जो चाल महाराष्ट्र में चली और तत्कालीन उद्धव सरकार को पलटने में कामयाब रही तथा मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार की जगह भाजपा के शिवराज सिंह चौहान को कुर्सी दिलवा दी वह झारखंड में सफल नही होने वाली। यहां का आदिवासी समुदाय जनता जानती है कि सोरेन सरकार ने उनके लिए कितनी लड़ाई लड़ी और विकास किया है,और कर रहे हैं। अशोक का कहना है कि यह गेम भाजपा को मंहगा पड़ेगा।

अब ऐसे में जिस जनता ने अपना भरोसा जताकर उन्हें इलेक्ट किया आज उन्ही पर संकट मंडरा रहा है। जेएमएम पार्टी की संयुक्त सरकार अब खतरा महसूस कर रही है।उसे डर सताने लगा है कि कहीं महाराष्ट्र व एमपी जैसे हालात झारखंड में भी न पैदा कर दिए जाएं, इसलिए संख्याबल की गणित को साधने छत्तीसगढ़ जो कि कांग्रेस सरकार का मौजूदा राज्य है,सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। तो ऐसे में क्या लोकतंत्र के मायने बदल गए हैं। जब चाहो जैसे चाहो वैसे ही सरकार बना लो!यह नीति यदि अधिक सूटेबल है तो फिर चुनाव व इलेक्शन के मायने ही क्या हैं। इलेक्शन कमीशन को सीधे तौर पर एक्शन लेना होगा और कुर्सी की खरीद फरोख्त से लोकतंत्र को बचाना होगा।

Khabar Times
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