नेशनल डेस्क – भारती लोकतंत्र का मजाक बनाना और उसका मखौल उड़ाना अब दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। चुनावी प्रक्रिया मतदाताओं के स्वतंत्रता व विवेक का एक हिस्सा है उसे स्वतंत्रता है इस बात की,कि जिस दल या व्यक्ति को चाहे उसे अपना वोट दे सकता है। लेकिन अब खरीद फरोख्त व लालच देने का दौर हावी है,इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन हो रहा है। इसी बात को गंभीरता से लेते हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल जबाब करते हुए जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मतदाताओं के वोट हासिल करने के लिए मुफ्त में गिफ्ट देने के वादे करना एक गंभीर मुद्दा है,इस पर केंद्र सरकार को स्टैंड लेना चाहिए। एक याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार के कहा कि चुनाव में मुफ्त बिजली,पानी,या अन्य कोई भी गिफ्ट देने का लालच देना वोट वोट की स्वतंत्रता को प्रभावित करना है,इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है। देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार से इसकी जांच करने कहा है।
यहां बता दें, कि आम आदमी पार्टी ने कई राज्यों में मतदाताओं से मुफ्त बिजली, पानी, मोहल्ला क्लीनिक और शानदार स्कूल देने का वादा किया। इसी वादे के दम पर उसने दिल्ली और पंजाब में सत्ता हासिल की। अब वो गुजरात, हिमाचल प्रदेश में भी इसी तरह का वादा मतदाताओं से कर रही है। हाल ही में बीजेपी नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर इसके लिए हमला भी किया था। अब यह मामला अदालत में भी ले जाया गया है।
चीफ जस्टिस एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र से वित्त आयोग के जरिए यह पता लगाने को कहा कि क्या राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों को मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए मुफ्त उपहार देने और वितरित करने से रोकने की संभावना है।
शुरुआत में, बेंच ने यह काम अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज को सौंपा था कि वो इस मुद्दे पर केंद्र के रुख का पता लगाएंगे। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे नटराज से कहा था, आप एक स्टैंड लीजिए कि मुफ्त उपहार जारी रहना चाहिए या नहीं। दूसरी ओर, चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि यह पिछले निर्णयों में कहा गया था कि घोषणापत्र राजनीतिक दलों के वादों का हिस्सा होते हैं। इस पर, पीठ ने जवाब दिया:
“हम मतदाताओं को मुफ्त गिफ्ट या वादे के जरिए रिश्वत की बात कर रहे हैं। अब अगर आप कहते हैं कि यह आपके हाथ में नहीं है, तो भारत के चुनाव आयोग का उद्देश्य क्या है।
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को
इस साल अप्रैल में, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार देना राजनीतिक दलों का नीतिगत निर्णय है, और यह राज्य की नीतियों और पार्टियों द्वारा लिए गए निर्णयों को रोकता नहीं है।
चुनाव आयोग के वकील ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे से निपटने के लिए एक कानून ला सकती है। केंद्र के वकील नटराज ने सुझाव दिया कि यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। नटराज की दलीलों को खारिज करते हुए बेंच ने केंद्र सरकार से इस मामले पर स्टैंड लेने को कहा। कोर्ट ने कहाः
“आप यह क्यों नहीं कहते कि आपका इससे कोई लेना-देना नहीं है और चुनाव आयोग को फैसला करना है? मैं पूछ रहा हूं कि क्या भारत सरकार इस पर विचार कर रही है कि यह एक गंभीर मुद्दा है या नहीं?
-सुप्रीम कोर्ट, मंगलवार
चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि इसका नतीजा यह निकलेगा कि राजनीतिक दल अपने चुनावी प्रदर्शन को प्रदर्शित करने से पहले ही अपनी मान्यता खो देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 25 जनवरी को याचिका पर नोटिस जारी किया था।