तीर्थराज प्रयाग के भव्य कुम्भ में मनकामेश्वर महादेव का होगा दिव्य दर्शन
त्रिवेणी में करोड़ों सनातनी लगाएंगे आस्था की डुबकी

प्रयागराज – तीन नदियों का संगम कहें या सनातन संस्कृति के मिलन का अद्भुत योग दोनों का पर्याय प्रयागराज ही है। बारह वर्षों बाद प्रयागराज में कुम्भ का मेला लग रहा है। यह कुम्भ कई मायनों में महत्वपूर्ण है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का दौरा आये दिन प्रयागराज में होना इस बात का प्रमाण है कि यह अद्भुत कुम्भ सनातन संस्कृति का मिजाज व राजनीति की एक नई दिशा का नेतृत्व करेगा।
सीएम योगी के महत्वाकांक्षी कुम्भ पर सनातनियों के आस्था का बल और अधिक गौरव प्रदान करता है। इस बार 2025 का कुम्भ और ज्यादा महत्वपूर्ण है। प्रयागराज पूरे विश्व की निगाहों पर केंद्रित रहेगा। संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाई जाएगी। चारों पीठ के पूज्य शंकराचार्य इकट्ठे होंगे। परमधर्म संसद सजेगी और गो संसद भी । प्रयागराज से उठ रही गो माता राष्ट्र माता की गूंज इस बार वैश्विक स्तर पर सुनाई देगी।
सन्तो,महंतों,नागा साधुओं और देश देशांतर के विविध रूपों का दर्शन प्रयागराज में होने जा रहा है। यहां अति प्राचीन पीठ श्री मनकामेश्वर महादेव मन्दिर जो कि भगवान भोलेनाथ का साक्षात आभास कराता है। कहा जाता है कि प्रयागराज में आने वाले जो श्रद्धालु संगम स्नान के पहले मनकामेश्वर महादेव का दर्शन करते हैं उनकी मनचाही इच्छा जरूर पूरी होती है ऐसी मान्यता है। इस लिए यहां देश के हर कोने से सनातनी पहुंचते हैं। यह यमुना नदी के नए पुल के समीप यमुना तट पर स्थित है। इतिहासकार बताते हैं कि इलाहाबाद अकबर के किले से जोधा यहां आकर दर्शन करती थी । जोधा का यह हिन्दू संस्कार था उनकी मान्यता यहां सरोपरि रही है। और इसी तरह बंधवा के लेटे हुए हनुमान मंदिर का दर्शन अद्भुत है।
सभी तीर्थों का राजा है प्रयागराज। इसीलिए इसे तीर्थराजप्रयाग कहते हैं। संकल्प,तप,साधना का संगम है प्रयागराज। दो नदी गंगा,यमुना के साथ ही संतों विद्वानों के सरस्वती रूपी ज्ञान का संगम कराता है तीर्थराज प्रयाग।
माघ मास में मास परायण करने का कल्पवास करने का पौराणिक महत्व है। संगम तट पर गंगा तट पर साधु संत, कल्पवासी घास फूस की कुटिया बनाकर,टेंट लगाकर साधना हेतु कड़ाके की ठंड में सुबह स्नान दान करके अपने जीवन के लौकिक व पारलौकिक पुण्य को अर्जित करते हैं। महाकुम्भ सनातन संस्कृति व परम्परा के कई रंगों का मिलन है,आस्था व संस्कार एवं पुरातन संस्कृति की विरासत है। प्रयागराज अब सज चुका है।