रायपुर– जिस छत्तीसगढ़ राज्य की आबकारी नीति की सराहना पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश मे हो रही थी,जिसके नीति का स्टडी करने के लिए दूसरे राज्यों की टीमें रिसर्च करने आने लगी थीं.जिस राज्य में लगातार शराब विक्री की कमाई बढ़ती रही थी.जिसमे साल २०२०-२१ में ४६३५.८० करोड़ रुपये थी वहीं साल २०२२-२३ में २००० करोड़ की चोरी पकड़ी गई.जिसका खुलासा प्रवर्तन निदेशालय(ED) की टीम ने किया. मौजूदा हालात यहाँ यह है कि नेता और अधिकारी मिलकर धान के कटोरे वाले राज्य में शराब की लूट कर बैठे.भाजपा के 15 सालों की सत्ता में यह घोटाला नही दिखा जो अब दिखने लगा और गिरफ्तारियां भी हुईं.
क्या से क्या हो गया देखते देखते-
कांग्रेस शासित वाले इस राज्य में धुआंधार अवैध शराब की विक्री कर दो हजार करोड़ की शराब डकार ली गई. राज्य को पूर्णतः छत्तीसगढ़िया नेतृत्व वाला राज्य कह कर यहां की जनता को वशीभूत करने वाले भूपेश सरकार की मुसीबत भी बढ़ गई.वजह राजनीतिक बताई जा रही है.बताने वाले कोई और नहीं बल्कि यहाँ के मुख्यमंत्री ही हैं.उनका कहना है कि दिल्ली की धमक और इशारे से राज्य में ईडी का पहरा बैठा दिया गया है.यह सब राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के चलते हो रहा है.चलो कुछ पल के लिए यदि इसे मान भी लिया जाय तो शराब ठेकेदारों व व्यवसाइयों के यहां से करोड़ों रुपये जमा कैसे और किस कमाई के मिल रहे हैं? यह भी सवाल खड़ा होता है.इसका उत्तर क्या हो सकता है,क्या यह जमा रुपया भी केंद्रीय भाजपा सरकार ने जमा कराए हैं? इस पर भी विचार करना चाहिए. जो दिख रहा है उसे कैसे और किस रुप में झुठलाया जा सकेगा?
भाजपाई सरकार में क्या थी राज्य की हालत–हालांकि छःत्तीसगढ़ राज्य शराब से होने वाली मौतों की कहानी भी लिख चुका है.मार्च 2014 में बिलासपुर के आयुर्विज्ञान संस्थान में 11 मौतें शराब के अत्यधिक सेवन से हुई थी.जिसमे कुल 34 लोगों के गंभीर होने की खबर थी और 11 की मौत हुई थी.तत्कालीन आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल थे.छत्तीसगढ़ प्रान्त में यदि राष्ट्रीय वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण की यदि बात की जाय तो यहां 100 में से 35 लोग शराब का सेवन करते हैं जो शायद देश मे सर्वाधिक है.
क्या कहा था तत्कालीन आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल ने-
तब के तत्कलीन आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल ने कहा था कि” हमारा प्रयास ये है कि इसकी खपत कम होनी चाहिए क्योंकि यह एक सामाजिक बुराई है.लेकिन पूरे देश मे कहीं भी कानून के माध्यम से नशाबंदी सफल नही हो सकती”.
धर्म गुरुओं ने भी इस पर टिप्पणी करते रहे.उनका कहना है कि छत्तीसगढ़ के लोग धार्मिक होने की बजाय शराबी हो रहे हैं,उसकी वजह मुफ्त में दिया जाने वाला चावल है,इस कारण से ही लोग शराबी बनते जा रहे हैं. हालांकि ऐसा भी नही रहा कि यहां की राज्य सरकार राज्य में शराब बंदी का दावा करने से कभी पीछे हटी हो.लेकिन कमबख्त राजस्व ऐसा है कि दिल ही नही करता शराब पर प्रतिबंध लगाने का.
राज्य में शराब की खपत और आय-
छःत्तीसगढ़ में देशी शराब की खपत 2002-03 में जहां 188.12 लाख प्रूफ़ लीटर थी वहीं 10 साल बाद 2012-13 में 395.19 लाख प्रूफलीटर हो गई थी,जो कि अब 600 लाख प्रूफ लीटर से अधिक हो गई है.इससे सरकार की आय दुगुनी हो गई.और जारी डेटा अनुसार साल 2020-21 में 4635.80 करोड़ रुपये की आय हुई थी ,और 2022-23 में 2000 करोड़ की लूट का पर्दाफाश भी हो गया.जिसका खुलासा कोई और नहीं बल्कि प्रवर्तन निदेशालय की टीम ने किया है. हालांकि यहां लगभग 700 के आसपास शराब दुकानें संचालित होने का दावा भी किया गया है.हालांकि,आये दिन शराब तस्करी के मामले भी उजागर होते रहे हैं जो 2019 से अब तक 7000 के पार मामले उजागर हो चुके हैं.
शराब घोटाले की आंच से घिरती सरकार की मुश्किल बढ़ती जा रही है?
राज्य की कांग्रेस सरकार की मुश्किलें थमने का नाम ही नही ले रही है.पड़ रहे लगातार ईडी के छापे में सरकार के नुमाइंदे फंसते ही जा रहे हैं.जांच में फंसे रायपुर के कांग्रेसी महापौर एजाज ढेबर से चल रही पूंछतांछ के बाद उनके भाई अनवर ढेबर की गिरफ्तारी और बढ़ी रिमांड के बाद आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा,दो सीए के बाद रायपुर के शराब व्यापारी के साथ ही बड़े शराब कारोबारी पप्पू ढिल्लन की गिरफ्तारी और उनके घर से बरामद नगदी आधा करोड़ से ज्यादा की राशि के अलावा जमा फिक्स डिपॉजिट का 52 करोड़ की राशि ने और मुसीबत खड़ा कर दी है.ऐसे में लगता है कैबिनेट के बड़े चेहरे भी गिरफ्त में हो सकते हैं.इस सिलसिले में भिलाई विधायक देवेंद्र यादव का भी नाम आया था और पूंछतांछ हो चुकी है,यह अलग बात है कि उनकी गिरफ्तारी नही हो सकी, लेकिन लगातार निगरानी और घर के कागजात का जब्तीकरण उन पर भी मुसीबत पैदा कर दी है.
कोयला खनन और शराब घोटाले की लपट क्या लोकप्रिय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर भारी पड़ेगी?-
प्रदेश में लगातार पड़ रही सीबीआई और ईडी की रेड से यहां का सियासी पारा तो गर्म हो चुका है.भाजपाइयों को चार साल बाद बैठे बिठाए शोर मचाने का मुद्दा तो मिल गया है लेकिन भूपेश सरकार की जो लोकप्रिय छाप मूलतः छत्तीसगढ़ियों के बीच मे है उन पर विजय पाना मुश्किल भी दिखता है.यहाँ की ग्रामीण और खास कर छत्तीसगढ़ियों के बीच दाऊ की जो कार्य कुशलता और चातुर्य- मिलनसार खूबी देखी जाती है,उसमें छेद कर पाना फिलहाल अभी भाजपाइयों के लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है.क्योंकि काका के रूप में बनी सीएम भूपेश बघेल की छवि तगड़ी है.राजनीतिक लाभ मिले न मिले पर मौजूदा सरकार की साख पर बट्टा जरूर है ईडी का शराब घोटाले में पर्दाफास करना.लेकिन अभी डगर कठिन दिखती है सत्ता रूपी पनघट तक पहुंचने की. दरअसल,इस बात को इसलिए महत्वपूर्ण बिंदु में देखा जा रहा है,भूपेश बघेल एक जमीनी राजनीतिक सिपाही रहे हैं,जिन्होंने पटरी से उतर चुकी कांग्रेस को राज्य में गति दी और सत्ता तक के सिंहासन पर अपने आप को काबिज किया,यह उनकी जमीनी जकड़ है.जिसे एकदम से उखाड़ पाना कठिन होगा.हालांकि दिल्ली सरकार की वर्तमान हालात पर नजर डालें तो केजरीवाल की भी पकड़ आम जनता पर विश्वास व ईमानदार छवि वाली रही परन्तु शराब का नशा इस कदर फैला की केजरीवाल सरकार के मजबूत स्तम्भ कहे जाने वाले डिप्टी सीएम व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया शराब घोटाले के आरोप में अभी जेल में कैद है.कमोवेश यही स्थिति छःत्तीसगढ़ में भी बनने की सँभावनां नजर आ रही है.हालांकि दोनों राज्यों की भौगोलिक स्थितियां उलट हैं.कृषि व आदिवासी बहुल राज्य है छःत्तीसगढ़, यहां की दारू और धान एक परंपरागत पहचान भी है.फिर भी गलत तो गलत है,लोकतंत्र में मायने कब बदल जाएंगे यह कह पाना जरा कठिन होता है,जनता किस बात पर कब घमासान रुख अख्तियार कर ले यह ऐन वक्त पर समझ आता है.हालत चिंताजनक जरूर है क्योंकि ईडी ने डेरा जमा लिया है.सरकार के कई नुमाइंदे जेल में भी बन्द हो चुके हैं.सौम्या चौरसिया की गिरफ्तारी इसकी शुरुवात थी.पिक्चर अभी बाकी है,सिंडिकेट का पर्दाफाश इंटरवल के बाद और गहरा हो सकता है.जनजातियों के संस्कारों में शामिल दारू के घोटाले की बात है और आबकारी मंत्री भी इसी समुदाय से आते हैं,उनके विभाग में लूट की गई है,शक की सुई बड़ी है ईडी की धार तेज होती देखी जा रही है, इसलिए सत्ता की हनक भी कमजोर पड़ती दिख रही है.कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि मुखिया तक भी सीबीआई और ईडी के हाथ पहुंच सकते हैं.