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जय श्री राम के बदले जय सियाराम की धूम,कांग्रेस सरकार के मुखिया भूपेश बघेल बजरंग बली और माता सीता का भी लिया आशीर्वाद,जननी कौशल्या के जन्मभूमि में भांचे राम का अद्भुत उत्सव इस बार भी लगाएगा पार,देखें क्या कह रही है छःत्तीसगढ़ कि आवाम
राजनीति पर धर्म का सुरक्षा घेरा "राष्ट्रीय रामायण महोत्सव व हनुमान चालीसा का पाठ"भूपेश सरकार को और कर दिया मजबूत
भारत की राजनीति में अब राम ही खेवनहार ! जो लोग उड़ाते थे मजाक उन्ही ने अब राम की शरण गहना शुरू कर दिया है-
रिपोर्ट- संजय शेखर
जनता की राय शुमारी पर आधारित लेख.
रायपुर/छःत्तीसगढ़- भारत लोकतांत्रिक भी है और धार्मिक भी,यहाँ भगवान की आस्था भी है और राजनितिक आदर भी.
आज ही नहीं बल्कि पहले भी राजनीति और धर्म का आमना सामना चुनावी मुहाने पर होता रहा आया है,लेकिन तब भारतीय जनता पार्टी के ही राम थे.कहने का मतलब यह है की राजनीति में यदि किसी ने राम का सहारा लिया तो वह भारतीय जनता पार्टी ही रही.लेकिन अब बिना राम काम नहीं चलता दिख रहा है,इसलिए श्री राम की जगह सियाराम भी कहने लगे हैं राजनितिक दल.हालाँकि बीजेपी राम के नाम पर ही २ सांसदों से ३०० सांसदों वाली पार्टी बनकर भारत का नेतृत्व कर रही है. भगवन श्री राम का नाम भारतीय राजनितिक फलक पर और अधिक सारगर्भित तब मानने जाने लगा जब नरेंद्र मोदी ‘जय श्री राम’ के नारे के बल पर भारत के प्रधानमंत्री बन बैठे.
कमल दल के जय श्री राम का सामना पंजे के जय सिया राम से-
हालाँकि राम आस्था के प्रतीक हैं जो करोड़ों सनातनियों का मूल माने जाते हैं. लेकिन यदि गौर किया जय राम के जीवन से तो जितनी कुशल राजनीती के संचालक श्री राम थे और धर्म पथ पर विजय पताका फहराने के लिए उन्होंने राजनितिक सूत्रों का प्रयोग किया शायद ही अब कोई दूसरा कर पायेगा. असीम धीरज के भंडार बहपरभु श्री राम मानवीय संवेदना के प्रवाह भी थे और धर्म निति के परिपालक भी साथ ही राजनीति के मर्मज्ञ भी. अब राजनितिक चालों में कटुता दिखाई देती है पहले धर्म ज्ञान के साथ नीति व् नियत का मेल था. भारतीय जनता पार्टी का नैरा जय श्री राम का है तो अब इससे इत्र कांग्रेस ने जय सियाराम को अख्तियार कर लिया है. कर्नाटक में धर्म का जो नाटक दिखा वः बजरंग बलि बर्दाश्त शायद नहीं कर पाए और अकेले राम की जगह माता जानकी के साथ जयघोष करने वाले जयसियाराम के दल वाली कांग्रेस में चले गए. मतलब यह है की अब कांग्रेस ने भी देश की भावना धर्म के प्रति आस्था को समझ लिया है और पूर्व के सिद्धांतों को खूंटी में टांग कर अब माता जानकी समेत प्रभु राम के नाम यानि जय सियाराम की डोर पकड़ ली और आजकल यदि को मजबूत व् कारगर खेवनहार मानते हुए चरण वंदना में लग गई.देर ही सही,राजनीति ही सही लेकिन सनातन की गूंज तो होने लगी है. आम जनता की बात यदि इस संबंध में करें तो यही रे है की हमें तो राम से मतलब है सनातन से मतलब है, वो चाहे कांग्रेसी सनातनी हो या भाजपाई सनातनी। जय श्री राम यानि भाजपा और जय सियाराम यानि कांग्रेस।छत्तीसगढ़ की यदि हम बात करें तो यहाँ सियराम सत्ता में और जय श्री राम विपक्ष में,विपक्ष में इसलिए की १५ सालों तक जब भाजपा सत्ता में थी तब शायद इतना जय श्री राम का नैरा या जयघोष नहीं सुनाई देता था जितना की अब. क्यूंकि रमन सरकार ने मदांध होकर सत्ता चलाई जिसकी परिणति १५ सैलून की सरकार के बावजूद १५ सीटों में भजपा का सिमट जाना है. यदि सत्ता के समय प्रभु राम को याद किये रहते तो शायद आज जय श्री राम ही छत्तीसगढ़ में गूंजता और सत्ता में बीजेपी ही रहती.
भूपेश का छत्तीसगढिया वाद और जय सियाराम का नारा भाजपा को इस बार भी सत्ता से रख सकता है दूर –
छत्तीसगढ़ में प्रांतवाद और जातिवाद दोनों विकास को विवाद में रख तो दिया है,लेकिन फिर भी जो राजनितिक खाई भूपेश बघेल ने जनता और भारतीय जनता पार्टी के बीच खड़ी की है वः काफी गहरी दिखाई पड़ती है.छत्तीसगढ़िया अब यही मानते हैं की भूपेश बघेल के आलावा और कोई मूल वासी यहाँ का नहीं है,जो उन्हें और उनके राज्य को सही रास्ता दिखा सकेगा. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह भी बाहरी वाले चोट से जख्मी हुए ,उनके ऊपर भी भरी व् रिवावद मतलब ससुराल का सत्ता पर दखल होना तथा ठाकुरवाद का भी पक्षधर होने का तमगा लगा था जो की चुनाव में चाउर वाले बाबा का भात नहीं पाक सका,लेकिन छत्तीसगढ़िया दाऊ ने अपनी दाल गाला ली. अब तो सियाराम का साथ भी मिल गया है और जय घोष भी होने लगी है. रामायण महोत्सव को देखकर लगता है की,इस बार फिर बघेल को छत्तीसगढ़ का भूपेश बनाएगी यहाँ की जनता. भाजपा को अभी काफी मेहनत करनी पड़ेगी और लोगों का दिल जितना पड़ेगा. उसे यह साबित करना पड़ेगा की अब चालीस चोरों की पुनरावृति नहीं होगी और अलीबाबा का भी डेरा खत्म किया जाएगा. नए युवा लेकिन जनहित व् जनसरोकारों की सोच व् धार्मिक विचार वाले व्यक्ति को यदि भाजपा टिकट देने में आगे दिखती है तो शायद है की प्रभु श्री राम कुछ कल्याण कर पाएंगे. कांग्रेस सरकार के मुखिया भूपेश तो अब बजरंग बली को भी रिझाने लगे हैं।
क्या कहते हैं 70 वर्षीय मोहनलाल व जुगवंती दाई-
रायगढ़ में हनुमान चालीसा करवाना और राष्ट्रीय स्तर पर रामायण का मंचन कराना एक बार फिर से प्रचंड मतों से अपने आप को सत्ता में काबिज करना है। जो हालात अभी दिख रहे हैं उसकी बात करें, तो पिछली बार की भांति भाजपा और कम सीटों पर सिमट सकती है. क्यूंकि आज भी भाजपा के लोगों व् संगठन में वही अकड़ दिखती है जो पूर्व की सत्ता में थी।यहाँ की जनता व्यवहार और सरलता चाहती है यहाँ बहुत अनुशासन से काम नहीं चलता यह कहना है मोहन कुर्रे का । ७० वर्षीय मोहन का कहना है कि, कुछ भी हो “अब सरकार के मुखिया मोर घर के मोर छत्तीसगढ़िया हे जे छत्तीसगढ़ी गोठिया थे”. भाजपा की बात करने पर कहते हैं ‘लबरा हे वो मन ह’.इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की १५ वर्षों में बीजेपी क्या कमाई है और ५ सालों में भूपेश ने क्या विश्वास बनाया है.यदि ६८ साल की जुगवंती दाई बात करें तो उसका कहना है की मोर भांचा है राम अब भूपेश तो ओला पूज थे तो ओखर आशीर्वाद घलो मिली तो भूपेश ह जीतिहि औरो कोनो नै जीते।