2024 में भाजपा की रणनीति का बोलबाला या फिर यूपीए खोया हुआ जनाधार कर पायेगी हासिल? भाजपा की तिगड़ी खिलाएगी कमल या नीतीश,ममता,केसीआर का गठबंधन राहुल का हाथ करेंगे मजबूत ?
राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर उठापठक और फ़ेरबदल की स्थिति के अनुसार पेश है एक रिपोर्ट के मुताबिक आसान नही है डगर 2024 की.2019 की हारी हुई सीटों पर भाजपा का फोकस कितना बदलाव ला पायेगा जो तय करेगी जीत का फार्मूला
दिल्ली / नेशनल – आज से दो साल बाद होने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में क्या फिर मोदी व अमित शाह की जोड़ी कमाल दिखाएगी ! अब तो नड्डा भी कुशल राजनीतिक खिलाड़ी के तौर पर संगठन की शक्ति लेकर राष्ट्रीय शीर्ष पर बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष मौजूद हैं। भाजपा का भरोसा देश का विश्वासमत हासिल करेगा या फिर यूपीए अपनी खोई हुई ताकत लौटा पाने में सफल होगी। थर्ड फ्रंट बना सकने में कितने राजनीतिक संघटक साथ मे होंगे यह सब 2023 आते आते तय दिखने लगेगा। फिलहाल,मुख्य लड़ाई व मैदान-ए-जंग तो 2024 का लोकसभा चुनाव है। देश की राजनीति में प्रमुख दखल देने वाला राज्य उत्तरप्रदेश है जहां की योगी आदित्यनाथ का जलवा कायम है,यहां का मूड ही तय करेगा भाजपा की जीत का जश्न! लेकिन सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना होगा और मंहगाई व बेरोजगारी के मुद्दों की बौछार का भी।ऐसे में जनता का भरोसा जीत सकने में भाजपा की तिगड़ी कितनी कारगर होगी,आइये,डालते हैं एक नजर इस रिपोर्ट पर-
राजनीतिक दांवपेंच में सब जायज है,जीत बस होनी चाहिए। इसी तर्ज पर अद्यतन राजनीतिक ढांचे में अग्रसर भारतीय जनता पार्टी अब 2019 में हारे हुए सीटों को लेकर मंथन व रणनीति बनाने में अहम बैठकें शुरू कर दी है ताकि आगामी 2024 की लोकसभा चुनाव में फिर से प्रचंड बहुमत हासिल की जा सके। इसी संदर्भ में मंगलवार को पार्टी के 25 वरिष्ठ मंत्रियों व पदाधिकारीयों की बैठक ली गई और विचार विमर्श किया गया। जिन राज्यों में पार्टी हारी थी अब उसी पर विशेष फोकस करना होगा और उसी की तैयारी में पार्ट जुट गई है। विधानसभा चुनाव भी कुछ राज्यों में 2023 में होने हैं उसकी भी रणनीति दो कदम आगे चल रही है। पार्टी में राजनीतिक चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री व भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नजर इन राज्यों में खासकर होगी रणनीति को लेकर। मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा व अमित शाह ने 25 मन्त्रियों के साथ बैठकें की है।
हारे हुए राज्यों पर फोकस न करके बीजेपी हारी हुई सीटों पर फोकस क्यों कर रही है, इसका जवाब वरिष्ठ चुनाव विश्लेषक संजय कुमार देते हैं.
उनके मुताबिक, “भारत में लोकसभा चुनाव अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव जैसे नहीं होते जहां राजनीतिक दलों की कोशिश पूरा राज्य जीतने की रहती है. भारत में लोकसभा चुनाव पर पार्टियां पूरे राज्य में दमखम नहीं लगाती, वो सीटों पर ज़ोर देती हैं.
मान लीजिए पूरे राज्य में अगर किसी पार्टी का जनाधार नहीं है, उनका केवल पांच फ़ीसदी ही वोट है. ऐसे में पार्टी पूरे राज्य में ज़ोर लगा दे और वोट प्रतिशत 12 फ़ीसदी आ भी जाए और सीटें पार्टी न जीत पाए, तो उस वोट प्रतिशत के बढ़ने का पार्टी को कोई फ़ायदा नहीं होगा.
इस वजह से राजनीतिक दल लोकसभा में सीटों पर फोकस करते हैं और विधानसभा चुनाव में पूरे राज्य पर फोकस करते हैं.” एक नजर डालते हैं भाजपा के रणनीति के हिस्सों पर तो इन बिंदुओं व श्रेणियों में पाते हैं-
यूं तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को बीजेपी के लिहाज़ से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है.
पहला: वो दस राज्य जिसमें बीजेपी ने लोकसभा की सारी सीटें जीती थीं जैसे गुजरात और राजस्थान.
दूसरा: वो ग्यारह प्रदेश जहां बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई जिसमें केरल और तमिलनाडु शामिल हैं.
तीसरा: बाक़ी वो राज्य जहां सहयोगियों और अपने दम पर बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया जैसे महाराष्ट्र और बिहार.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ हारी हुई सीटों पर बीजेपी की जीत कैसे सुनिश्चित हो- इसकी ज़िम्मेदारी पार्टी ने अपने वरिष्ठ मंत्रियों को कुछ महीने पहले ही सौंपी थी. मंगलवार को उसी की रिव्यू मीटिंग थी.
इनमें से किसी मंत्रियों को 2 सीटें तो किसी को 5 सीटें दी गई हैं.
इसके तहत हर मंत्री को इन सीटों की ज़िम्मेदारी दी गई है ताकि वो वहां जाएं और कम से कम 48 घंटे बिताएं ताकि आम जनता की नब्ज़ टटोल सकें.
सत्ता विरोधी लहर भी होगी –
साल 2024 तक पीएम मोदी को केंद्र की सत्ता में आए दस साल पूरे हो जाएंगे. ऐसे में जानकारों को लगता है कि तब होने वाले चुनाव के दौरान बीजेपी के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर भी होगी.
हाल के दिनों में कुछ राज्यों मे बीजेपी के गठबंधन के साथियों ने उनका साथ छोड़ा है, जिनमें बिहार में जेडीयू का एनडीए गठबंधन से निकलना, पंजाब में अकालियों का बीजेपी का साथ छोड़ना और महाराष्ट्र में शिवसेना का दो गुट में विभाजन होना शामिल है. जानकारों की नज़र में इन तीनों राज्यों में बीजेपी का चुनावी समीकरण इस वजह से बिगड़ा है.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं, “सत्ता विरोधी लहर और गठबंधन के साथियों का छोड़ कर जाना- इन दोनों वजहों से बीजेपी पहले के मुक़ाबले थोड़ा चिंतित है. बीजेपी मान कर चल रही है कि इन वजहों से पिछली बार के मुक़ाबले उनकी सीटें थोड़ी कम हो सकती हैं. इस वजह से बीजेपी को इन राज्यों के नुक़सान की भरपाई कहीं और से करनी ही होगा, जिसके लिए उन्हें हारी हुई सीटों पर फोकस करना पड़ रहा है.”
सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक़ 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला 190 सीटों पर हुआ था, जिसमें से बीजेपी 175 सीटों पर जीती थी और कांग्रेस 15 सीटों पर., “राजनीति आज के दौर में पर्सेप्शन की लड़ाई हो गई है. इस लड़ाई में वैसे तो बीजेपी आगे है, लेकिन वो चार कदम और आगे रहना चाहती है.”
वे कहते हैं, “मंगलवार को जो चर्चा बीजेपी ने अपने मंत्रियों के साथ की, उससे पार्टी ये कॉन्फिडेंस झलकाने की कोशिश कर रही है कि जिन सीटों पर हर 2019 में जीत रहे हैं उन पर तो हमारी चिंता है ही नहीं. मेहनत हमें चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए करना है. 303 तो हमारी झोली में है, बाकी बची सीटों को अपने पाले में लाने की कोशिश करनी है.”
संजय कुमार इस प्रक्रिया को ‘शैडो बॉक्सिंग’ के साथ जोड़ कर देखते हैं.
शैडो बॉक्सिंग, मुक्केबाज़ी के खेल में अभ्यास की एक तकनीक को कहते हैं जिसमें अभ्यास के दौरान खिलाड़ी हवा में घूंसे मारता है जैसे कि कोई अदृश्य प्रतिद्वंदी सामने हो.
संजय कहते हैं, “हारी हुई सीटों पर फोकस करके बीजेपी एक पर्सेप्शन बनाना चाहती है कि हमारे सामने कोई है ही नहीं. विपक्षी पार्टियों को एकदम किनारे लगा दिया है. उनकी लड़ाई ख़ुद से है. सामने और कोई है ही नहीं.”
छोटे घटक व क्षेत्रीय पार्टियों का हासिल जुड़ सकता है
इधर बीजेपी ने अपनी रणनीति बनाकर जीत हासिल करने और 2024 का चुनावी गेम अपने पाले में करने की अग्रिम पंक्ति में खेल रही है तो वहीं विपक्षी पार्टियों ने भी बीजेपी को सत्ता से बाहर करने एकजुट होने की कारगर पहल कर रही ही। कांग्रेस में तकरार व वरिष्ठ नेताओं का विकेट गिरना जारी है जिससे बैकफुट पर आ गई कांग्रेस भारत जोड़ो अभियान के तहत जनता का मन टटोलने व विश्वास जीतने में लगी है। ममता बनर्जी,केसीआर सहित नीतीश कुमार भी जोड़तोड़ में लगकर यूपीए के करीब आने और खेमेबाजी कर एकजुटता का पहाड़ा पढ़ना शुरू कर दिया है। नीतीश कुमार की राहुल गांधी से खास मुलाकात भी नेतृत्व बदलने की जुगत में एकजुट होना चाहते हैं,ताकि भाजपा को बाहर किया जा सके। लेकिन रार व दरार से कितना बच पाएंगे यह तो समय व आपसी तालमेल ही बताएगा । हालांकि इस वक्त राहुल गांधी व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ वाली फ़ोटो भी सोशल मीडिया में खूब चर्चित व वायरल हो रही है।
2024 के चुनाव को क्रिकेट के खेल से जोड़ते हुए कहते हैं, “बार-बार एक ही पिच पर खेलते रहने से पिच ख़राब हो जाती है. ऐसे में कई अच्छे बॉलर और बैट्समैन भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पातें क्योंकि पिच ही ख़राब होती है.”
“बीजेपी ने 2024 के चुनाव से पहले अपनी पिच ही बदल ली है. अब वो ‘परिवारवाद’ और ‘भ्रष्टाचार’ को मुद्दा बना कर अगला चुनाव लड़ने के मूड में हैं. वहीं कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां अभी भी पुराने पिच पर खेल रही हैं. इसका उदाहरण है कि राहुल गांधी आज भी ‘महंगाई’ और ‘बेरोज़गारी’ के मुद्दे पर ही रैली कर रहे हैं. बीजेपी विपक्ष की पिच पर आना ही नहीं चाहती. उनके पास अपने मुद्दे हैं. बाद के लिए बीजेपी के पास हिंदुत्व और राम मंदिर तो हैं ही.”
हालांकि विजय त्रिवेदी कहते हैं, “सत्ता में दस साल लंबा वक़्त होता है. बीजेपी को पिछले चुनाव में सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों और पीएम मोदी के करिश्मे का बहुत लाभ मिला था. लेकिन दस साल में उनके मंत्रियों और सांसदों ने कैसा प्रदर्शन किया, दस साल बाद जनता इसका भी हिसाब मांग सकती है. सरकार और मंत्रियों के काम भी मायने रखेंगे ही.”
बीजेपी को इस बात का बखूबी अहसास भी है. शायद इस वजह से अगली अग्नि परीक्षा में बीजेपी पूरी तैयारी के साथ उतरना चाहती है।
साभार-बीबीसी की एक रिपोर्ट के आधार पर