रायपुर– राजनीतिक गलियारों में आशा भरी निगाहों से देखता कांग्रेस का अधिवेशन किसी तिलस्म से कम नही.यह तिलस्म उस जादुई पतली रस्सी की तरह है जिस पर जादूगर बहुत ही संभल कर चलता है.लेकिन यहाँ न तो कोई उम्दा जादूगर है और न ही करिश्माई पंडित जो मंत्रों की साधना से मृतसंजीवनी की विद्या जागृत कर जीवन मे जोश भर देगा.रायपुर के जोरा में जोर आजमाइश करते देश भर के कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा दो दिन से देखने को मिल रहा है.कांग्रेस पार्टी की जादूगरनी प्रियंका गान्धी वाड्रा को गुलाब की पंखुड़ियों पर चला कर जो राहे खिदमत की गई वो कईयों के गले नही उतर रहा है.और राजनीतिक सफर में गुलाब के पंखुड़ियों को कांटों से अलग कर सजाया तो गया लेकिन जिन गुलाबी टहनियों से उनके काँटे अलग किये गए कहीं वही ढेर न बन जाएं क्योंकि फूलों को रौंदना कहीं न कहीं भारी पड़ जाता है.
भारत जोड़ो यात्रा का महारथी 2024 के समर में रायपुर के जोरा से क्या जोर लगा पाने में सफल होंगे-
छत्तीसगढ़ में भारत जोड़ो यात्रा के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का 85 वां अधिवेशन आयोजित किया गया है.इस अधिवेशन में पूरे कांग्रेसी दिग्गजों ने शिरकत की है.लगभग 15 हजार कांग्रेसी सैनिक रायपुर को छावनी बनाकर 2024 की बागडोर को फतह करने की रणनीति बनाने एकजुट हुए हैं.राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ को मेजबानी सौपना भी यहां के मुखिया भूपेश बघेल के कद को बढ़ाना है.एक तरफ जब भारत जोड़ो की लंबी यात्रा पर राहुल गांधी निकले तो शुरुआती दौर में असरहीन टिप्पणी देखी गई.लेकिन जैसे जैसे कदम बढ़ते गए कारवां बढ़ता गया वैसे वैसे विपक्ष मे हलचल तेज होती गई.सर्द रातों में और कड़कड़ाती ठंड में राहुल की गर्मी की भी अंतराष्ट्रीय खबर बनी,लोग उनके अंदर की गर्मी को जानने सूक्ष्मतम अनुसंधान करने में लग गए.राजनेताओं से लेकर योगगुरु भी तंज कसते देखे गए.लेकिन राहुल ने न तो हार मानी और न ही रार ठानी बल्कि धुन के पक्के राहुल ने कुछ अलग करते रहे.ईडी की जांच परीक्षा में भी खरे उतरे राहुल और उनकी माँ कांग्रेस की वरिष्ठ नियंत्रक सोनिया गांधी की राजनीतिक कुशलता और त्याग की कहानी ने पार्टी पर पैतृक व परिवारवाद के लगे तमगे को भी दूर करते हुए गैर गान्धीयन मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी की बागडोर सौंप दी.अब पार्टी शायद कुछ करवट ले ले इस उम्मीद व भरोसे से सोनिया गांधी आज अधिवेशन में भावुक होते हुए अपने राजनीतिक सन्यास की ओर इशारा कर गईं.यह तो तब होता है जब अपने गुलिस्तां को सुरक्षित देखकर किसी कुशल माली के हाथों जिम्मेदारी सौंपी जाती है.रायपुर अधिवेशन में जो कांग्रेसी तारे दिख रहे हैं उनमें काली रात की उपस्थिति की चमक है या फिर आसमान की स्वच्छता का प्रतीक.यह तो आगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनावों के समर में देखने को मिलेगा.बहरहाल,अभी तो मोदी के रंग में रंगी सियासत अनेकों जोड़तोड़ की गणित से गुजरेगी तब यदि कांग्रेसी बीजगणित मजबूत रहा तो कुछ अंश सुधरता दिख सकता है,बरना अभी तो हिंदुत्व,राष्ट्रवाद,मन्दिर कॉरिडोर निर्माण और विकास का मुद्दा ही भारी दिख रहा है जिस पर भाजपा दौड़ती चली जा रही है.हालांकि राहुल की बढाई गई दाढ़ी में भी राजनीतिक परिपक्वता अब दिखने लगी है.पहले से अब कांग्रेस मजबूत जरूर हुई है लेकिन सेंध लगाने में माहिर विपक्षी पार्टी से भी गुरेज कर पाना थोड़ा मुश्किल भी लगता है.अधिवेशन के पूर्व कांग्रेसी नेताओं के घर ईडी के छापे कहीं न कहीं सियासत पर पहरा डालने की कोशिश थी यह हम नही बल्कि सियासतदार बोल रहे हैं.क्योंकि,सियासत हर समय अपने रंग-ढंग बदलते रहती है.
राहुल गांधी को पसंद है भूपेश का जुनून और जिद,रायपुर के जोरा में कांग्रेस लगा रही 24 का जोर –
राहुल गांधी एक जीवट योद्धा की तरह लगे जरूर हैं,चर्चाएं भी हो रही हैं कुछ कामयाबी की सकारात्मक सोच भी लोगों में बनी है लेकिन यूं ही नही बन जाता इतिहास, ऐसे ही नही मिल जाती सत्ता की चाभी,कुछ रणनीति बनानी पड़ती है पंडितों की राय शुमारी के साथ ही सबकी अदब जरूरी है,बुजुर्गों का आशीर्वाद और युवाओं के जोश को साथ लेकर चलना पड़ता है.राहुल गांधी की जो छवि कुछेक सालों में जनमानस में बनाई गई उससे इतर भाषणी कला का मंजा खिलाड़ी बनना भी बाकी है जो दूसरी ओर कई गुना भारी है.हालांकि राहुल गांधी मुनव्वर राणा के इस कहे हुए शायरी को मानते हैं कि- बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है,ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है.
कांग्रेसी अब अपने पारी का इंतजार कर रहे हैं और 2024 कि सियासी सफर की जोर आजमाइश करने में जुटे हैं. प्रियंका और राहुल कांग्रेस के दो पाये हैं यह देश भर के कांग्रेसी मानते हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे एक स्विच बोर्ड की तरह आन ऑफ की रोल में हैं.राहुल देश मे आजादी का अमृतमहोत्सव मनाया गया और अमृतकाल चल रहा है ऐसा पढ़ने को मिलता है.तो इस अमृतकाल के कुंभ में कांग्रेस का संगम कितना पुण्य अर्जित कर पायेगा यह तो अधिवेशन के तीन महीने बाद ही पता चल सकता है.जब 90 दिन की कम अवधि तक कार्यकर्ताओं में जोश व पदाधिकारियों में अनुशासन व लगाव दिखाई देता रहे.यहां उल्लेखनीय यह जरूर है कि जिस तरह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की जीवटता का लोहा मनते लोगों ने देखा है यदि हर कांग्रेसी सिपाही में ऐसा जुनून व जिद सत्ता को लेकर रही तब हो सकता है कि कोई तिलस्म हो जाये क्योंकि भूपेश ने धरातली लड़ाई को लड़ कर छत्तीसगढ़ को जीता है और शायद यह आगे भी हो सकने में कोई गुरेज नही है.छत्तीसगढ़ महतारी की गोद मे कांग्रेसी अधिवेशन का होना माता कौशल्या के मायके से नाता जोड़ना कहीं न कहीं भगवान राम से संबन्ध जोड़ने वाली बात है,शायद इसे कांग्रेस अपने संबोधन या एजेंडे में जिक्र भी करे. रायपुर में अधिवेशन कर रहे राहुल की सकारात्मकता कहीं न कहीं इस बात को उजागर करती है जो की इस शब्दों में कहा जा सकता है कि,”मिले जुनूँ का नतीजा जरूर निकलेगा,इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा”.
रायपुर में दुल्हन की सी सजी राहों पर प्रियंका का चलना चर्चाएं खास -यूं तो इस कदर राहों को तब सजाया जाता रहा है जब अमीरजादों के यहां की लड़कियां शादी में बिदा की जाती हैं.बारातियों के स्वागत द्वार को गुलाब की पंखुड़ियों से सजाया जाता है और राहों पर फूल बिछा कर बिदाई की जाती है.रायपुर के कांग्रेसी अधिवेशन में दोनों बातें फिट नही बैठती हैं,यहां न तो बारात आई और न ही बिदाई है फिर कोमल गुलाबी पंखुड़ियों को सरेराह बिछाने की क्या जरूरत रही.राजनीतिक जानकार इसे चमचागिरी कह रहे हैं,लेकिन मैं इस कदर की चमचागिरी को भी नही मानता,यह अतिउत्साही छत्तीसगढ़ी स्वागतीय संस्कार हो सकता है,लेकिन यहां यह सवाल भी उठना लाजमी है कि,कांग्रेस की वरिष्ठ सोनिया और राहुल की आगवानी में इतनी दिलचस्पी नही दिखी जितनी प्रियंका के स्वागत में हद पार हो गई.कुछ तो बात जरूर है इसे तो दिल के दरवाजे पर ही छोड़ देना चाहिए जिसे अधिवेशन की मेजबान टीम ही समझेगी.हालांकि भूपेश बघेल का तीर एक होता है और निशाने कई होते हैं.टी एस बाबा भी तो लाइन अटैच हैं लेकिन आगे की ताजपोशी के हकदार भी,कहीं ये पंखुड़ियां अगले कदम की ठहराव तो नहीं जो बाबा बढ़ाने की सोच रहे हों.जो भी हो लेकिन हुआ बेजोड़ है राजनीति को बदल देने की ताकत गुलाब की पंखुड़ियों में जरूर हो सकता है.