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बाढ़ की बेरुखी का जिम्मेदार खोखला प्रबंधन : कोरी वाहवाही व कागजी खानापूर्ति की बाढ़ में बह गईं योजनाएं। दुर्ग की दुर्गति का जिम्मेदार कौन? डालें एक नजर सच्चाई पर!!

दुर्ग भिलाईं – बरसात खोल दी प्रशासन की पोल ! जी हां, वर्तमान मौसम बारिश का है,मानसून की बरसात हो रही है। दुर्ग भिलाईं में नदी,नालों,सड़को एवं बस्तियों में पानी लबालब है। लोग जिस सामान को बनाने के लिए वर्षों मेहनत करते हैं,वह घरेलू सामान उनके आंखों के सामने बाढ़ के गंदे पानी मे तैर रहा है,खराब हो रहा है। निचली बस्तियों के मकान ध्वस्त हो रहे हैं। इन सबके बीच प्रशासन अमला भी बचाव कार्य करते मीडिया के फोटो फ्रेम में कैद किया जा रहा है। लेकिन हकीकत कुछ और है। आइये! डालते हैं एक नजर इस रिपोर्ट पर- 

आंखों देखा हाल-बेहाल…

सुबह का वक्त था,चारों ओर जलमग्न नजारा और चिल्लपों की आवाजें ! कहीं करूँन क्रंदन भी तो कहीं प्रशासन को मिलती गालियां सुनाई पड़ती थीं। इन सबका कारण बनी थी तगड़ी बारिश ! जी हाँ, भिलाई में इंद्रदेव की हल्की सी खुशी भिलाईं वासियों के लिए आफत उस वक्त बन गई जब लोगों के घरों में बारिश का पानी समाने लगा। नाले उफान पर हो गए,सड़कें जलमग्न हो गईं ,और लोग घरों से पानी उलचना शुरू कर दिया। यह महज बारिश के शुरुवाती दौर की झलक थी,अभी तो पूरा बरसात बाकी है।

जरा समझें! क्या है माजरा विकास की हकीकत का – हर वर्ष यही हालत पैदा होती है। बरसात के पूर्व नालों की सफाई होने का निर्देश जारी होना,कुछ जगहों की फोटोग्राफी करा अखबारों में तेजी से हो रहे कार्य के नाम से खबर व फ़ोटो छपाना,पहले सफाई के नाम पर पैसा खाना फिर बरसात की बाढ़ के नाम पर ! कुल मिलाकर पैसे का ही खेला होबे है। यदि बस्तियों की हालत ठीक बनानी होती,तो महज 6 महीने लगते हैं,सुधार व सुदृढ़ीकरण में। लेकिन अधिकारियों व नेताओं, जनप्रतिनिधियों को इससे कोई भी मतलब नही है। इनको मतलब है मात्र पैसे से। इन्हें पता है जब जनता तंग रहेगी,परेशान रहेगी तभी हमारी खेती पकती रहेगी और वह है वोट की फसल. भिलाईं में इस वक्त संजय नगर ,सुपेला का लक्ष्मी नगर, रैसने कालोनी, राधिका नगर,कैम्प एरिया और रिसाली क्षेत्र महज अव्यवस्था की एक बानगी बयां कर रहे हैं। हालात तो और गंभीर हैं। शासन प्रशासन तमाशबीन बन कर आंख मूंद कर काम करती है। अभी हाल में कुछ दिन पहले यही खबर छपती रही कि भिलाईं व दुर्ग के मेयर की निगरानी में आयुक्त महोदय ताबड़तोड़ नालों की करा रहे हैं सफाई। नाली,नालों की सफाई,तंग गलियों की सफाई व सीवरेज की सफाई का काम जब तेजी स चला तो आखिर,इतनी जल्दी ही पानी कैसे भरने लगा घरों में,नालों में उफान कैसे? सीवरेज लबालब कैसे?

भिलाई में बारिश से फैली अव्यवस्था पर भारतीय जनता पार्टी के शिक्षा प्रकोष्ठ के प्रांतीय सदस्य बृजमोहन उपाध्याय का कहना है कि, भिलाई की भलाई हमेशा ही भाजपा के हाथ मे रही है,कांग्रेस सरकार की रीति,नीति और नियत सिर्फ पैसा बटोरने की रही है। कांग्रेस के विधायक सड़क के ऊपर सड़क बनाने में विश्वास रखते हैं,इन्हें गरीब जनता के दुख या तकलीफ से मतलब नही है। नगर निगम भी पटरी पार टाउनशिप में मशगूल है, क्योंकि वहां बीएसपी का भी पैसा है और निगम का भी ,फायदा वहां है ,तो यहां क्यों कराएंगे काम । बृजमोहन ने कहा कि वैशाली नगर में निगम का कोई विकास कार्य नही दिखता,यहां बाढ़ जैसे हालात हैं,निचली बस्तियों में पानी घुस रहा है,लोग घरों से पानी निकाल रहे हैं ,सड़कों पर पानी है,नालों की साफ सफाई नही हुई इसलिए नाले भी पटे पड़े हैं,जोइतनी ही बारिश में उफान पर आ गए। उन्होंने कहा कि ,सुपेला बस्ती,संजय नगर व लक्ष्मी नगर की हालत देखकर पूरे भिलाईं की व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

उक्त तश्वीर,रैसने बस्ती की है,नाले की उफान से पानी वापस घरों में भर रहा है। इसी तरह से अन्य बस्तियों का हाल है।

महापौर,विधायक व आयुक्त मस्त बारिश में जनता त्रस्त- अखबार के पन्नो में अक्सर संधारण कार्य व भूमिपूजन ,उद्घाटन की फ़ोटो उक्त जिम्मेदार माननीयों की छपती रहती है। लेकिन धरातली सच्चाई से कोसों दूर,माया नगरी के महराज बनकर महज कागजों में खोए हुए इनकी पोल यह बारिस खोल दी । करोड़ों का बजट पानी में बह जाता है और फिर पानी की बूंदों को सहेजने का काम करोड़ों से शुरू होता है। आना जाना लगा है। बजट की कमी नही,शासन पैसा देने में कोताही नही बरत रहा, लेकिन फूले हुए पेट पैसों की भेंट का स्वरूप जरूर बता रहे हैं। जनता को इसका हिसाब रखना चाहिए। सत्ता पक्ष तो गुरुर में है ही,विपक्ष भी कुंभकर्ण की नींद सो रहा है। न तो कोई विरोध न कोई जनहित की आवाज और न ही कोई गरीबों का कार्य , सब सुस्त पड़कर नियति पर सवाल खड़ा करने लग गए हैं। 

दुर्ग निगम की हालत बयां करते हुए एक सत्ता के करीबी व्यक्ति ने नाम न छापने की तर्ज पर बताया कि,यहां पैसों की बोली लगती है। निगम काम करना चाहता है लेकिन उसके ऊपर काम न करने की लगाम कसी जाती है। युवा मेयर चाहते हैं कि काम बेहतर हो,लेकिन बुजुर्गियत की चाबुक चल जाता है न काम करने का। दुर्ग नगर निगम की दुर्गति का दुष्परिणाम है दुर्ग का ऐसा विकास !

ठगड़ा बांध की रफ्तार,वक्री शनि की टेढ़ी चाल की तरह है। आज पर्यंत कई वर्षों से यह गतिविहीन है। कुछ दिन इर्द गिर्द काम वाले दिखते हैं फिर ठप्प? दुर्ग,पूर्व अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री का गृह नगर है,लेकिन दुर्ग आज भी विकास से कोसों दूर कैसे? सड़कों पर घूमते घुमन्तु जानवर,बदबूदार तंग गलियां,अस्त व्यस्त बेतरतीब यातायात,उफनाते नाले,भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी शिक्षा,और मनमानी कर्मचारी इस वक्त दुर्ग की पहचान हैं।मुख्यमंत्री,गृहमंत्री,सांसद,राज्यसभा सांसद सब यहीं के हैं यहीं से उनका राजनीतिक अस्तित्व है,लेकिन दुर्ग के अस्तित्व व सतीत्व को तार तार करने में कोई कोर कसर बाकी नही रखा गया। जवाहर नगर,उड़िया बस्ती,कातुलबोर्ड,केलाबाड़ी,आदर्शनगर,तितुरडीह सहित इंदिरा मार्केट दुर्ग प्रशासन की लापरवाही व उदासीनता की कहानी कह रहे हैं,बरसात ने पोल खोल कर रख दिया है।

नरवा,गरुवा,घुरवा,बाड़ी तंग हाल में – एक ओर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी की बात करते हैं,और उसके लिए अरबों का बजट भी स्वीकृत कर दिया है। लेकिन सड़क पर गरुवा की पोल,बरसात में नरवा,घुरवा व बाड़ी की पोल खुल रही है। बजबजाती नालियां,उफनते नाले,दुर्गन्धयुक्त सड़क व रास्ते ,पालीथिन खाती गाय व गरुवा सड़क पर छत्तीसगढ़ महतारी की विकास गाथा की पोल खोल रहे हैं।यह है दुर्ग की हालत ! हम किसी को हतोत्साहित नही कर रहे,बल्कि हकीकत की गुंजाइश बयां कर रहे हैं,जो आंखों देखा हाल है। भारतीय जनता पार्टी के जिला संगठन मंत्री एस के देवांगन ने वर्तमान व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि ऐसी हालत चिंताजनक है,कांग्रेस सरकार में बंटवारे की राजनीति है कमीशन के बंटवारे को लेकर आपस मे मतभेद व्याप्त है। इन्हें जनता के सुख दुख से मतलब नही है। इन्हें तो बस कमीशन चाहिए,बारिस ने इनकी हकीकत व तैयारी की पोल खोल दी है। फ़ोटो व अखबार के पन्नो में इनका विकास चलता है,हकीकत यही है जो इस वक्त दिख रहा है।

कब बदलेगी दुर्ग की तस्वीर ?…

सच्चाई तो यह है कि,जिस निगम को विकास कार्य के पूंजी की चाबी सौंपी गई है वह ही आज तक बेघर है। जो निगम दूसरों को घर बना कर दे,वो ही बेघर ? इससे बड़ा दुर्भाग्य दुर्ग का और क्या होगा। जी हां, दुर्ग नगर निगम का दफ्तर जहां संचालित है वह जमीन व भूखंड निगम का नही है। किराये के घर मे कब तक शान बघारे जाएंगे यह तो समझ आना चाहिए। क्या दुर्ग निगम के लिए जमीन नही दिखी होगी,या फिर कोई चाल है? दुर्ग की दुर्गति का यह भी एक उपेक्षित कदम हो सकता है। दुर्ग की तस्वीर तभी बदल सकेगी जब जनहितार्थ सोच वाले युवा आगे आएं। दीदी भैया की दलगत परिधि से ऊपर उठकर दुर्ग की अस्मिता व विकास कार्य की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरकर जनप्रियता का परिचय दें,लीगों को जोड़ें,झुग्गी झोपड़ी व मलिन बस्तियों में जाकर उनके हालचाल के साथ उनके अधिकारों की लड़ाओ लड़ें,तश्वीर जरूर बदल सकेगी । आम आदमी पार्टी के शहर अध्यक्ष डॉ एस के अग्रवाल का कहना है कि वर्षों से हम दुर्ग में रह रहे हैं लेकिन हालात जस के तस हैं। जरा सी बारिश में ही दुर्ग निगम व प्रशासन की व्यवस्थागत पोल खुल जाती है।

लोग परेशान हैं जनता त्रस्त है व अधिकारी नेता मस्त हैं।उनका कहना है कि आम आदमी पार्ट लोगों से मिल रही है,राहत कार्य मे भी हम लोग लगे हैं,बिना फ़ोटो फ्रेमिंग के हमारी पार्टी के कार्यकर्ता जनहित में कार्य कर रहे हैं,यही सेवा हमारे पार्टी की पहचान है। डॉ अग्रवाल की माने तो दुर्ग की तस्वीर दुर्ग की सत्ता बदलने पर जरूर बदलेगी ।पानी ही पानी बना दुर्ग की जनता की मुसीबत.निजात कब मिलेगी बाट जोह रहे हैं दुर्ग भिलाई वासी !!

 

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