रिपोर्ट- संजय शेखर
रायपुर- ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी “हिंदू साम्राज्य दिवस” हम सभी हिंदुओं/सनातनियों के लिए आत्मसम्मान, स्वाभिमान, प्रेरणादिवस एवं गौरान्वित अनुभव करने का दिवस है। क्योंकि इसी तिथि को हिन्दू हृदय सम्राट छत्रपति वीर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था।
इस अखण्ड हिंदुत्व की अलख जगाने वाले दिवस से ही सनातनियों में एक आशा की किरण जगी, क्योंकि जब संपूर्ण देश मे हिन्दू निराश था, मुग़लों और अत्याचारियों के अत्याचार से त्रस्त था, भारतीय नारियां, गौवंश, ब्राह्मण, मन्दिर, धार्मिक ग्रन्थ असुरक्षित थे, ऐसे समय मे वीर शिवाजी महाराज ने अपने अदम्य साहस और पराक्रम से मुगल सल्तनत को हराकर हिंदू साम्राज्य स्थापित किया ।
रायपुर के राम मंदिर में हिन्दू साम्राज्य दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संगठन महामंत्री, श्री विनायक राव देशपांडेय जी ने बताया की शिवाजी महाराज न केवल एक हिन्दू शासक व महान योद्धा थे बल्कि वे कुशल एवं सुयोग्य प्रशासक और अन्य हिंदू शासकों के प्रेरणास्रोत भी थे।
देशपांडे जी ने कहा कि, वीर शिवाजी प्राचीन भारतीय परंपराओं और समकालीन शासन प्रणालियों से समन्वय कर अपने ठोस सिद्धांतो के आधार पर अपनी शासन- व्यवस्था विकसित की थी। यह उनका अदम्य साहस, कूटनीति और प्रशासनिक क्षमता ही थी कि सिंधु नदी से लेकर दक्षिण समुद्र किनारे तक के सनातनियों ने हृदय से उन्हें अपना आदर्श व अधिपति माना।
कौन थे वीर शिवाजी महाराज-
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र में है हुआ था।उनके पिता शहाजी राजे भोसले एक शक्तिशाली सामंत राजा थे । उनकी माता जीज़ाबाई जाधवराज कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली धार्मिक महिला थीं। शिवाजी महाराज ने समर विद्या में अनेक नवाचार करते हुए छापामार युद्ध जिसे गुरिल्ला वार कहा जाता है, एक नई शैली की रचना की जो काफी सफल रही। वीर शिवाजी बचपन से ही साहसी व नई तरकीब के माहिर व रणनीतिकार थे । उन्होंने 1674 में मराठा साम्राज्य की नींव रखी, इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के सल्तनत औरंगजेब से संघर्ष कर उसे पराजित किया।
शिवा जी का आदर्श क्यों हिंदुओं के लिए प्रेरणादायी है
छत्रपति शिवाजी भोसले निराशा और हताशा के घोर अंधकार के परिवेश में भारतीय आकाश में तेजोदीप्त सूर्य की भांति उदय हुए। जब सदियों की गुलामी ने हिन्दू समाज के मनोबल को भीतर तक खोखला कर दिया था, उस वक्त पराधीन एवं मुगलों के आतंक से पराजित हिन्दू समाज को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, तब मराठा वीर सपूत के साहस ने एक आशा की किरण बनकर हिंदुओं का सम्मान लौटाया था। हिन्दू समाज मे मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम और धर्मरक्षक श्रीमद् भागवत गीता के उपदेशक श्री कृष्ण जैसे समकालीन महानायकों का आदर्श सम्मुख होने के वावजूद भी वर्तमान दुरावस्था ने उन्हें हताशा और घोर निराशा के गर्त में धकेल दिया था। उस घोर निराशा की निशा में भगवान श्रीकृष्ण और आचार्य चाणक्य के अनुयायी शिवाजी जैसे सूर्य का उदय हुआ। छत्रपति शिवाजी महाराज महात्मा विदुर की नीति को “नीति वाक्य” मानते थे कि –
कृते प्रतिकृतिं कुर्याद्विंसिते प्रतिहिंसितम् ।
तत्र दोषं न पश्यामि शठे शाठ्यं समाचरेत् ॥
-विदुरनीति
अर्थात जो जैसा करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करो । जो तुम्हारे साथ हिंसा करता है, तुम भी उसके प्रतिकार में उसकी हिंसा करो ! इसमें मैं कोई दोष नहीं मानता; क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता ही करने में प्रतिद्वंदी पक्ष की भलाई है ।
शिवा जी का उदय केवल एक व्यक्ति का उदय मात्र नही था बल्कि वह हिंदुओं के उत्साह और पुरुषार्थ का उदय था। गौरव व स्वाभिमान का उदय था।स्वराज, सुराज, स्वधर्म व सुशासन का उदय था। आयोजन को संबोधित करते हुए केंद्रीय महामंत्री ने कहा कि, शिवाजी का आदर्श राजा के जीवंत और मूर्तिमान प्रेरणा- पुरुष का उदय माना जाता है। उन्होंने कहा कि, हिन्दू साम्राज्य दिवस के रूप में वीर शिवाजी का राजा बनना या सिंहासन पर बैठना ही नहीं बल्कि उनका राज्याभिषेक समूचे हिन्दू समाज व भारत के गौरव की युगान्तकारी घटना थी। वीर शिवाजी के शौर्य गाथा का गुणगान करते हुए उन्होंने कहा कि, वीर शिवाजी ने आतातायी औरंगजेब के कुटिल व हिंसक आतंक के जाल को जिस तरह से कुतरते हुए अपने साहस, बुद्धि व रणनीति का लोहा मनवाया आज उसकी हिन्दू समाज को सख्त जरूरत है। वीर शिवाजी सबसे पहले छोटे छोटे किलों को जीतकर सैनिकों के मनोबल को बढ़ाया उसके बाद बड़े किलों को जीतना शुरू कर अपने राज्य का विस्तार किया। साथ ही आदिलशाही, कुतुबशाही, अफजल खां, राजा जय सिंह, औरंगजेब जैसे मुद्दई व उनकी सेना से जबरदस्त मोर्चा भी लिया और फतह भी किये। कभी कभार हारे लेकिन बहुधा जीते। कभी संधि व समझौता किये,जब जरूरत पड़ी तो पीछे भी हटे, रुके, ठहरे, शक्ति संचित किया और फिर जीत हासिल की। इस तरह से शिवा जी मुगलिया सल्तनत के ताबूत के आखिरी कील साबित हुए और हिन्दूओं के आदर्श व स्वाभिमान के प्रणेता बने।
मंच पर उपस्थित रायपुर लक्ष्मी नारायण मंदिर के वेद प्रकाश जी ने शिवाजी की माता जीज़ाबाई के कौशल प्रबंधन व परवरिश की सराहना करते हुए कहा कि जीज़ाबाई की शिक्षा और धर्म परायणता से ही वीर शिवाजी इतने कुशल योद्धा व धर्मनिष्ठ छत्रपति बन सके थे। उन्होंने हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान को वीर शिवाजी के पराक्रम को आत्मसात करने की वर्तमान समय मे जरूरत बताई है। मन्दिर,धर्म और आचरण को दुरुस्त रखते हुए जो व्यक्ति नीतिगत चतुर्यता के साथ जीवन प्रबंधन में चलता है वही विजेता बनता है इस बात का ख्याल सभी हिंदुओं को रखना चाहिए।
आज की वर्तमान स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस तरह से समाज मे मुसलमानों के द्वारा किये जा रहे दुष्कृत्य की खबरे बढ़ रही हैं, वे वाकई चिंताजनक हैं। इसका सामना करने व खात्मा करने के लिए हमे अब एकजुटता के साथ उनकी ही भाषा मे उनको जबाब देना होगा। हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई का नारा बुलंद कर मन्दिर के धर्माचार्य ने कहा कि तेज, पुरुषार्थ और अदम्य साहस का मेल रखते हुए धार्मिक भावना और ईश्वरीय शक्ति को संकलित कर समाज मे हिंदुत्व का डंका बजाना होगा। किसी भी गलत कार्य का विरोध करना सीखें,जब तक हम हो रहे अनैतिकता के विरोध में अपनी आवाज बुलंद नही करेंगे तब तक वीर शिवाजी का आदर्श हमारे समाज के लिए अधूरा साबित होता रहेगा। वीर शिवाजी को अपना प्रणेता मानते हुए उनको पढें और उनके सिद्धांतो को आत्मसात कर राष्ट्र को हिंदू राष्ट्र का गौरव प्रदान करें। इस मौके पर सैकड़ों स्वयंसेवक, बजरंगी एवं विहिप के कार्यकर्ता व पदाधिकारी सहित हिन्दू समाज प्रमुख उपस्थित रहे।