सलेक्शन पर इलेक्शन भारी : मुख्यमंत्री,मंत्री ,विधायकों ने बढ़ा लिए अपने वेतन,भत्ते.कर्मचारी-अधिकारी बैठे ही रह गए धरने पर!
छत्तीसगढ़/ रायपुर-(राज्य ब्यूरो) एक कहावत है कि राजा अपनी मर्जी का ही मलाई खाता है। यह छत्तीसगढ़ में बखूबी चरितार्थ हो रहा है। आज विधानसभा में सर्वसम्मति से विधायकों,मन्त्रियों व मुख्यमंत्री का वेतन भत्ता में बढ़ोतरी करने का विधेयक पास हो गया। अब 5 साल के लिए निर्वाचित (इलेक्टेड) जनप्रतिनिधियों के वेतन भत्ते में काफी इजाफा हो गया है। लेकिन सलेक्ट होकर नौकरी में आये अधिकारियों कर्मचारियों को अपने अधिकार की लड़ाई सड़क पर लड़नी पड़ रही है। अभी धरने पर पूरे राज्य के कर्मचारी बैठे हुए हैं। उनकी भी मांग है कि उनके हिस्से का भी मंहगाई भत्ता व वेतन बढ़ा दिया जाय। मन्त्रियों के अलावा कर्मचारियों का भी परिवार है और पेट भी। लेकिन सत्ता व विपक्ष की सांठगांठ इस मसले पर फिट रही,चूंकि वेतन तो सत्ता पक्ष का भी और विपक्ष का भी ,बढ़ा तो दोनों का है। और मसले पर राय नही बनती लेकिन बात अर्थ की थी इसलिए बात व सहमति बनना निश्चित था,जो हुआ भी।
कितना किसका बढ़ा वेतन -भत्ता – छत्तीसगढ़ विधानसभा में विधायक दल सत्ता पक्ष व विपक्ष ने एक मत व सर्वसम्मति से वेतन भत्ते के संसोधन बिल पर अपनी सहमति दे कर प्रस्ताव पारित कर लिया है। अब मुख्यमंत्री,मंत्री,संसदीय सचिव,नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष,तथा विधायकों के वेतनमान व भत्ते में पारित विधेयक 2022 में लगभग 60 फीसदी तक की बढ़ोतरी कर दी गई है। हालांकि इस बढ़ोतरी से राज्य वित्तीय कोष पर अतिरिक्त भार बढ़ेगा । आइये जानते हैं किसका कितना बढ़ा अर्थ –
- मुख्यमंत्री 135000 रुपये से बढ़कर 205000 रुपये, लगभग 70 हजार की बढ़ोतरी
- मंत्री 130000 रुपये से बढ़कर 190000 रुपये,अर्थात 60 हजार की बढ़ोतरी
- संसदीय सचिव का 121000 रुपये से बढ़कर 175000 रुपये .
- विधानसभा अध्यक्ष 132000 रुपये से बढ़कर 195000 रुपये ,बढ़ोतरी 63 हजार।
- विधानसभा उपाध्यक्ष की 128000 से बढ़कर 180000 रुपये, जिसमे 52 हजार की बढ़ोतरी
- नेता प्रतिपक्ष 130000 से बढ़कर 190000 रुपये जिसमे 60 हजार रुपये की बढ़ोतरी,
- विधायक 95000 रुपये से बढ़कर 160000 रुपये तक हो जाएगी।
इस तरह से यदि देखा जाय तो मुख्यमंत्री और मंत्रियों के वेतन भत्ते पेंशन में प्रतिवर्ष लगभग 2 करोड़ रुपया बढ़ोतरी होगी जो कि अतिरिक्त वित्तीय भार होगा। इसी तरह नेता प्रतिपक्ष 7 लाख 20 हजार प्रतिवर्ष,विधायकों के वेतन भत्ते और पेंशन में 4 करोड़ 68 लाख रुपये प्रतिवर्ष बढ़ोतरी का अतिरिक्त भार राजकीय कोष पर पड़ेगा।
दरोगा जी परमानेंट, सेलरी है फिसड्डी,दाऊ जी टम्प्रेरी पर सेलरी है झकास – उपरोक्त सबहैडिंग पर यदि बात करें तो “दरोगा” जी का मतलब उन सभी कर्मचारियों व अधिकारियों से है जिनका जॉब ग्रेड में सलेक्शन होता है,ये कोई 5 साल के लिए नही आते बल्कि इनका कार्यकाल सर्विस उम्र के अनुसार होता है,लेकिन सेलरी व बेतन भत्ते को लेकर संघर्ष चल रहा है। वहीं “दाऊ” जी का मतलब नेताओं,मन्त्रियों व विधायकों से है जो महज 5 साल के लिए जनता द्वारा चुनकर आते हैं जो टम्प्रेरी हैं ,भरोसा नही है कि 5 साल बाद ये इस पद पर रहेंगे या नही ,जनता के मूड पर इनका भविष्य टिका है लेकिन वेतन,सेलरी तो लाखों में। अब यही राज्य का निर्धारण करते हैं तो कुछ भी हो सकता है। कर्मचारी आज अपनी वेतन विसंगतियों को लेकर सड़क पर है और मंत्री जी सेलिब्रेट कर रहे बड़े बड़े होटलों व आशियानों में। लड़ाई तो है, एक अमीर वर्ग और एक गरीब वंचित वर्ग के बीच की । एक के पास ऑप्शन है क्या क्या खाऊं और दूसरे के पास चिंता है कि क्या खाऊं? बस इसी बीच के फर्क को आज और गाढ़ा कर दिया गया ।
सड़क पर प्रदेश की शासकीय-अशासकीय शक्ति, मांग रहा अधिकार- एक तरफ सरकार अपनी ढोल पीट डाली जिसकी थाप नोट पर थी। जनप्रतिनिधियों का वेतनमान बढाकर राजनीतिक महत्व पर डोर कस दी है मंत्रिमंडल ने। अब सेलरी बढ़ गई तो राजनीतिक महत्व पर लोग टूट पड़ेंगे अपना दांव आजमाने। लेकिन सही तो यह है कि यह खेल अब बन्द होना चाहिए। अब राजनीति में भी शिक्षा व टेस्ट अनिवार्य हो ताकि सलेक्टेड स्किल्ड लोग ही वहां पहुंचे जिससे राज्य व राष्ट्र का रियल मान स्वाभिमान व आर्थिक कीर्तिमान स्थापित हो। एक तरफ वेतन बढ़ गया जो उतना जरूरी नही था। दूसरी तरफ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन हड़ताल पर हैं। इनकी भी मांग 34 प्रतिशत डी ए बढ़ोतरी को लेकर है। यदि लाखों कर्मचारी अधिकारी सड़क पर ही बैठे रहेंगे तो लोकसेवा प्रभावित होगी,सरकारी कामकाज प्रभावित होगा,इसलिए सरकार को अब विलंब न करते हुए रास्ता अख्तियार करना होगा जिससे इनको भी निजात मिल सके। हड़ताल को अधिक लंबा खींचना नुकसान देह हो सकता है। दमनकारी नीति से नही बल्कि स्वच्छ नेक नियति से उनका उन्हें अधिकार मिलना चाहिए।
- भरे बाजार मधुशालायें नाच रहीं हैं,नशा ही नशा है-छत्तीसगढ़ में सत्य व सेवा था ,जहां मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम की माता का मायका,मतलब भगवान श्री राम का ननिहाल! लेकिन अब सब उल्टा पुलटा हो रहा है। राजनीतिक गलियारों में मात्र राम को राजनीतिक लाभ का लाभांश मानकर चर्चा करते हैं। यदि रियल में रील से हटकर रियलिटी में आएं तो मर्यादापुरुषोत्तम की मर्यादा आज भी नजर आएगी। छत्तीसगढ़ राज्य संसाधनों ,संस्कृति व सेवाभावियों का प्रदेश रहा है। लेकिन कुटिल विचारधारा ने इसे तारतार कर विच्छेदित कर दिया। आज मर्यादा गिरवी है,धौंस दिखाने वाले व अ-मूल छत्तीसगढियावादियों के झूठे प्रपंच ने सामाजिक समरसता को कुचने का कुत्सित प्रयोग किया है। अब यहां अमन औ चमन चाहिए। नशा से ऊब गए हैं लोग। अब शिक्षा,व सम्मान चाहिए,रोजगार का स्वाभिमान चाहिए। विधानसभा में पारित करना था तो नशामुक्ति का ऐलान पारित करते,शिक्षा का चिराग व विकास का आयाम पारित करते युवाओं को नौकरी व रोजगार देने का ध्वनि व राह पारित करते तब तो कुछ अलग सत्ता की खुशबू आती। आज फिर एक राजनीतिक प्रपंच व चुनाव को दूषित बनाने का राह अख्तियार करने की मजबूरी दे डाली जो शायद जन सामान्य पर भारी पड़ेगी।
छत्तीसगढ़ महतारी की क्या यही थी पुकार ? यही लड़ाई मूलतः समाज मे आज भी देखी जा रही है। जिसका दंश छत्तीसगढ़ दयनीयता के रूप में झेल रहा है। नशे की गिरफ्त में छत्तीसगढ़ अब अपनी मूल आस्था पर कुठाराघात कराने मजबूर दिख रहा है। इसकी निजात कैसे मिलेगी यह सभ्य समाज व जन जन को चेतना होगा। बात पते की यह है कि एक तरफ गरीब वर्ग इस हालत में पहुंच गया है कि उसे मुफ्त में राशन वितरण किया जा रहा है,भुखमरी के कगार पर है कुछ फीसदी जनसंख्या ! नशे की गिरफ्त में हैं अधिकांश युवा व अधेड़ , शराब की खातिर 60 वर्षीय महिला को गोली मारी जा रही है। बठेना जैसे गाँव मे दहशत गर्दी मची है। सड़कें व पुलिया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं। प्रदेश सही मायने में विकास कार्य से विखंडित हो रहा है। दलाली,डकैती,चोरी,लूटपाट और हत्या अब छत्तीसगढ़ के पर्याय बनते जा रहे हैं। आये दिन अखबार की सुर्खियों में रंजिशें दिखाई देती हैं,यह सब छपता रहता है। विधायकों के पेट मोटे होते जा रहे हैं,जनता की मुस्कुराहटों पर पर्दा पड़ गया है। मधुशालायें भरे बजार नशेमन होकर सम्मान,संस्कृति,सभ्यता व समाज का नाश कर रही हैं। क्या यही छत्तीसगढ़ महतारी की पुकार थी ?