बस्तर / सुकमा – दण्डकारण्य का क्षेत्र अबूझ पहेली बन गया है.आज के दौर में भी छत्तीसगढ़ के वनांचल में रहस्मयी प्रकोप झेलना शासन की मंशा व कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.सुकमा के एक गाँव मे हुई 4 मौतों से स्वास्थ्य सुरक्षा की पोल खुली है,प्रशासन की उदासीनता और गंभीर बीमारी के कारणों पर मौन अज्ञानता भारी पड़ रही है।
बस्तर संभाग के सुकमा जिला का कोंटा तहसील एक बार फिर अज्ञात बीमारी से हुई ग्रामीणों की मौत से सवालों के घेरे में है.कोंटा के ग्राम रँगाइपाड़ में 4 लोगों की अज्ञात बीमारी से संदेहास्पद मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि जिला मुख्यालय से सुदूर इस गाँव मे 4 लोग अभी बीमार हैं और 4 की मौत हो गई है। मरने वालों में 2 व्यक्ति 60 साल के हैं और 2 व्यक्ति 40 साल की उम्र के.बीमारी का कारण पता नहीं,लेकिन ग्रामीण बताते हैं कि अचानक हाथ पैर में सूजन हुआ और बाद में मौत हो गई। यह गाँव जिला मुख्यालय से काफी दूरी पर है,गाँव मे सड़क नही है,मुख्यमार्ग से विलग इस गाँव मे कई मूलभूत सुविधाओं की कमी भी है। स्वास्थ्य,शिक्षा, कुपोषण और अन्य तरह की मूलभूत सुविधाओं से वंचित यह गाँव मौत की पहेली बन गया.4 मौतों की खबर सुनकर प्राप्त सूचना पर स्वास्थ्य विभाग की एक टीम पहुंची है। हालांकि जांच की गई लेकिन कोई खास वजह समझ मे नही आई।
इस क्षेत्र में इसी तरह हो चुकी हैं कई मौतें-
दो ढाई साल पूर्व कोंट के पास ही रेगड़गट्टा ग्रामपंचायत में करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी,उसका भी कारण अज्ञात व संदेहास्पद ही रहा.प्रशासन तभी नींद से जागता है जब मीडिया में खबरों का बाजार गर्म हो जाता है,अन्यथा कोई झांकने वाला नही होता है। यदि ग्रामीणों की माने तो उनका कहना है कि,हमारे गाँव मे न तो स्वास्थ्य जांच की कोई सुविधा है और न ही पहुंच मार्ग की.जंगली इलाका है इसलिए अधिकारी या जिम्मेदार लोग बहुत ही कम आ पाते हैं। उस वक्त जब मौतें हुई थीं तब प्रशासन का अमला आया जरूर था,कई तरह की सुविधाएं देने का वादा भी किया लेकिन पूरा नही हो पाया. इस अज्ञात बीमारी में हाथ-पैर फूल जाता है और बेचैनी होकर दर्द भी बढ़ता है,बाद में मौत हो जाती है। यह कोई लाइलाज बीमारी तो नही,लेकिन समय पर इलाज न मिल पाने की वजह जरूर हो सकती है।
मौतों ने खड़ा कर दिया है शासन-प्रशासन पर सवाल
सवाल यह भी है,की जब आधा सैकड़ा से ज्यादा लोग काल के गाल में असमय समा गए थे तो शासन उसके बाद भी एलर्ट मोड में क्यों नही आ सका,कारण का पता लगाकर उसका निदान क्यों नही ढूंढ सका.गौरतलब,यह भी है कि बस्तर संभाग में विकास के नाम पर स्पेशल राशि का आबंटन भी राज्य सरकार को किया जाता है.फिर भी,समस्या जस की तस बनी हुई है। कुछ हद तक स्थानीय जिम्मेदार इस तरह की बीमारी को पानी मे फ्लोराइड की मात्रा की अनियमितता बताते हैं। तो कुछ यूरिक एसिड का बढ़ना.वजह चाहे जो भी हो,उस कारण का निदान अब नही हो पाना यह सवालिया निशान है। जिला कलेक्टर या शासन क्या इस तरह की मौतों को लेकर गंभीर नही है?या फिर वनांचल के आदिवासियों को इसी तरह मरने के लिए छोड़ दिया जाता है? यदि रेगड़गट्टा की मौतों पर संज्ञान लेकर उस कारण का निदान होता और इलाकाई ग्रामीणों को इस विषयक जागरूक करते हुए स्वास्थ जनित लाभ प्रदान किये जाते तो शायद यह रहस्यमयी मौतों का सिलसिला खत्म हो गया होता.शासन-प्रशासन को गंभीरतापूर्वक इस समस्या व अज्ञात बीमारी का हल ढूंढना चाहिए और उसका इम्प्लीमेंटेशन करना चाहिए ताकि दण्डकारण्य के लोगों की जान इस तरह की बीमारियों से बचाया जा सके.