छत्तीसगढ़दुर्ग भिलाई

सादगीपूर्ण-सहज व्यवहार के धनी,शिक्षा के प्रबल पुजारी व पक्षधर बी एस सक्सेना अब नही रहे,उनकी स्मृति व आशीर्वाद मनसा के शिक्षण ज्योति में रहेगी समाहित

स्मृति – विनम्र श्रद्धांजलि 

भिलाई– व्यक्ति का संघर्ष,व्यवहार और कृतित्व उसके न रहने पर भी अमिट रहता है। जिंदगी दोबारा नही मिलती लेकिन अपने पद चिन्हों की छाप छोड़ जाने के बाद अच्छे कार्यों की यादों के स्मृतिपटल पर भी बने रहना विरले व्यक्तियों की पहचान होती है। ऐसे ही विरले संघर्षशील व्यक्तित्व के धनी रहे श्री बी एस सक्सेना। जिन्होंने आई टीआई में कार्य करते हुए आई टी आई महाविद्यालय की नींव रखी और शिक्षा जगत में नाम रोशन किया।

श्री बी एस सक्सेना अब स्वर्गीय हो गए,विनम्र श्रद्धांजलि के साथ ओम शांति, नमन है उन्हे

बी एस सक्सेना मनसा महाविद्यालय के संस्थापक थे। उनका अनोखा अंदाज भिलाई को पसंद था.शिक्षा सर्व सुलभ हो इसका ध्यान व इसके प्रति हमेशा ततपरता उनकी पहचान रही है। पैसे को बहुत कुछ न समझना और मानवता को ही सरोपरि रखना,हर परिस्थिति में हँसमुख और हल्का महसूस करने की कला ही उनकी पहचान व जीवटता थी ।

श्री बी एस( ब्रह्म स्वरूप)सक्सेना साहब अब हमारे बीच नही हैं। उनका देहावसान 18 सितंबर को हो गया। 17 सितंबर विश्वकर्मा जयंती के पूजन किया और अगले दिन मनसा महाविद्यालय के शिल्पिकार यह धाम छोड़कर,परमधाम को चले गए। वेराजीव सक्सेना, संगीता श्रीवास्तव व मनसा कालेज के डायरेक्टर संजीव सक्सेना के पिता व कालेज की प्रिंसिपल स्मिता सक्सेना के ससुर थे। उनकी तेरहवीं व ब्रह्मभोज 30 सितंबर को आयोजित किया गया है।

कालेज परिवार उनकी सादगी,सहजता और मार्गदर्शन का हमेशा ही कीमत करता था,आज उन सबके बीच मायूसी भी है और उनके कृतित्वबोध को लेकर चलने की उत्प्रेरणा भी।

शुद्ध भारतीय व ग्रामीण परिवेश में रहना और सादगी के साथ सहज होकर पेश आना उनकी अदा थी।लोग सक्सेना साहब से इन्ही खूबियों के चलते बार बार मिलना भी जारी रखते थे। बात उन दिनों की है जब सक्सेना साब से हमारी मुलाकात उनके शिक्षण केंद्र मनसा महाविद्यालय में हुई। कांधे पर लाल गमछा रखे विल्कुल देहाती सहज रूप में देखकर मैं भी चौंक गया। मन मे उनकी सादगी घर कर गई,कि इतने बड़े संस्थान का संस्थापक इतनी सहजता,इतनी विनम्रता ? उनकी मुलाकात मेरे मन मे बहुत ही मानवीय उत्कंठा को जन्म दे गई। सही कहा गया है कि,जो रियल में संघर्ष कर आगे बढ़ते हैं,जिनके मन मे उदारता का भाव होता है और जो सही मायने में बड़े होते हैं,वे उतना ही सहज व विनम्र होते हैं। यही विनम्रता व बड़प्पन आदरणीय बी एस सक्सेना जी (बाबू जी) को औरों से अलग करती है। आज वे हमारे बीच सशरीर नहीं हैं,लेकिन उनकी आत्मा,उनका स्नेह,कार्य और पदचिन्ह जरूर हम सबके संग है और रहेगा। परिवार, इष्टमित्र,और शहर वासीयों ने बड़ी विनम्रता,आदरभाव से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित किया.ईश्वर उनकी उनकी सहृदयी आत्मा को अपने चरणों मे स्थान देकर मोक्ष प्रदान करें।

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