बुराड़ी दिल्ली- ज्ञान वैराग्य व भक्ति के साथ ही भागवत का हर अक्षर कृष्ण है.भागवत तो दिव्य कल्पतरू है,यह सिर्फ पुस्तक नहीं साक्षात श्री कृष्ण स्वरूप है.यह उद्गार भागवत कथा व्यास पंडित उमेश चंद्र द्विवेदी के हैं.
दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र के चंदन विहार में श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है.यह आयोजन चंदन विहार निवासी व भक्तजनों के तत्तावधान में आयोजित किया जा रहा है।कथा के प्रथम दिवस में कलश यात्रा में भक्तों का रेला लगा रहा,भक्तिभाव से महिलाओं ने कलश फेरी में भाग लिया। दूसरे दिन की कथा में कथाव्यास ने भागवत की महिमा का बखान,शुकदेव जन्म,राजा परीक्षित जन्म और अमर कथा का वर्णन किया गया।
सुखदेव जी भगवान शंकर द्वारा पार्वती को सुनाई गई अमर कथा से हो गए अमर-
दूसरे दिन की कथा में आचार्य उमेश द्विवेदी ने बताया कि,नारद के कहने पर भगवान शिव से पार्वती जी ने जब यह पूंछा की भोलेबाबा अपने गले मे जो मुंड माला धारण किये हैं वह किसका है?तब भोलेनाथ ने बताया कि वह मुंड माला किसी और कि नहीं बल्कि स्वयं पार्वती जी की हैं.हर जन्म में पार्वती जी विभिन्न रूपों में शिव की पत्नी के रूप में जब भी देह त्याग करती,शंकर जी उनके मुंड को अपने गले में धारण कर लेते.पार्वती ने हंसते हुए कहा कि हर जन्म में क्या मैं ही मरती रही? आप क्यों नहीं!इस पर शंकर जी ने कहा कि हमने अमर कथा सुन रखी है। पार्वती जी ने कहा मुझे भी वह अमर कथा सुनाइये।पार्वती जी को शंकर जी अमर कथा सुनाने लगते हैं और इधर एक उनके अलावा तोते का अंडा भी था जो कथा के प्रभाव से फूट गया,उसमें से सुखदेव जी का प्राकट्य हुआ । कथा सुनते सुनते पार्वती जी सो गईं और वह पूरी कथा सुखदेव जी ने सुनी और अमर हो गए।
कथा व्यास ने आगे बताया कि ,भागवत और भगवान की जो सुनता है उसको दुबारा इस मृत्युलोक में भटकना नही पड़ता.निष्काम भाव, भक्ति,24 अवतारों की कथा,नक़्क़रद पूर्वजन्म,परीक्षित जन्म आदि की कथा भक्तों को व्यासपीठ से दी गई.सैकड़ों श्रद्धालु कथा के भक्तिरस में सराबोर होकर कथा रूपी गंगा में आनन्द की डुबकी लगाते रहे. कथा के पहले दिन कलश यात्रा निकाली गई जिसमें बुराड़ी क्षेत्र व चंदन विहार के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और मातृशक्तियों ने सिर पर कलश रख चंदन विहार भ्रमण कर कथा स्थल पहुंची.यह कथा चंदन विहार में स्थित प्राचीन श्री बाला जी शनि मंदिर परिसर में आयोजित की गई है.सप्तदिवसीय कथा का कल दूसरा दिन था आज तीसरे दिवस की कथा की जाएगी.