नमामि गंगे परियोजना की धरातलीय सच्चाई पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लगाई फटकार,कहा-हकीकत में विभागों के कार्य आंख में धूल झोंकने वाले हैं
गंगा प्रदूषण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई,कोर्ट ने विभागों को फटकार लगाते हुए कहा कि हकीकत में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले
- हाईकोर्ट ने पूंछा कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना रुपया खर्च किया गया.
- कोर्ट ने कहा कि हक़ीक़त में विभागों के कार्य आंखों में धूल झोंकने वाले हैं।
प्रयागराज. गंगा प्रदूषण को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण के मामले में सुनवाई करते हुए जल निगम, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की कार्यप्रणाली पर तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा विभाग अपनी जवाबदेही को शटलकॉक की तरह शिफ्ट कर रहे हैं. जल निगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं फिर भी वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है.सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चलाने की जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनी को सौंप दी है और स्वयं अक्षम अधिकारी के मार्फत निगरानी कर रहा है. कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई. कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है.पूंछा है कि जब जलनिगम के पास पर्यावरण विशेषज्ञ नहीं तो वह पर्यावरण की निगरानी कैसे कर रहा है? कोर्ट ने महानिदेशक नेशनल मिशन क्लीन गंगा से उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है और पूछा है कि नमामि गंगे परियोजना के तहत अब तक कितना पैसा खर्च किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जांच रिपोर्ट मांगी है। बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की है।
साथ ही आईआईटी कानपुर और बीएचयू की प्रदूषण रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं करने पर केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की खिंचाई की। कोर्ट ने इससे पहले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के निदेशक से पूछा था कि नमामि गंगे योजना के तहत अब तक कुल कितनी रकम खर्च की गई है। बुधवार को सुनवाई के दौरान निदेशक की ओर से कोई जानकारी नहीं दी जा सकी। साथ ही जिन अन्य विभागों से जानकारियां मांगी थीं, उन सभी ने जानकारी मुहैया कराने के लिए समय की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा कि गंगा सफाई को लेकर के कोई भी गंभीर नहीं है। विभागों के पास कोई जानकारी नहीं है। कोर्ट ने जल निगम के पास एनवायरनमेंट विशेषज्ञ नहीं होने पर भी हैरानी जताई।
कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जांच रिपोर्ट मांगी है. बोर्ड ने एसटीपी की जांच के लिए 28 टीमें गठित की है. कोर्ट ने यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से टेस्टिंग, शिकायत निस्तारण न करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अभियोग चलाने की स्टेटस रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. इसके साथ ही पूछा कि गंगा जिन शहरों से होकर गुजरी हैं, वहां पर बने नालों को एसटीपी से जोड़ा गया या नहीं. नालों की स्थिति , डिस्चार्ज, ट्रीटमेंट व जल की गुणवत्ता को लेकर भी जानकारी मांगी है. एएसजीआई ने कोर्ट से विस्तृत जानकारी पेश करने के लिए समय मांगा. 26 सितंबर को मामले की अगली सुनवाई होगी. यह आदेश चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की पूर्णपीठ ने गंगा प्रदूषण के मामले में दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया.
कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई
मामले की सुनवाई के दौरान नेशनल गंगा मिशन, जल निगम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य विभागों की ओर से आदेश के बावजूद मामले में जवाब दाखिल न करने पर कोर्ट ने तीखी नाराजगी जताई. इन विभागों की ओर से पेश हुए अधिवक्ताओं ने जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा. इस पर कोर्ट ने कहा कि वह मामले को लटकाना नहीं चाहती है. कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से एसटीपी से लिए गए 29 नमूनों की रिपोर्ट मांगी तो बताया गया कि अभी जांच रिपोर्ट नहीं आई है. कोर्ट ने प्रयागराज में होने वाले कुंभ, माघ मेला के दौरान गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था जानी तो बताया गया कि मोबाइल एसटीपी के जरिए जल का शुद्धिकरण किया जाता है. याची अधिवक्ता वीसी श्रीवास्तव और शैलेश सिंह ने बताया कि उन्होंने प्रयागराज के सात स्थानों से जल की जांच कराई है, लेकिन सभी जांच फेल हो गए हैं. पानी सही नहीं है. उन्होंने कहा कि सभी एसटीपी को बंद कर देना चाहिए। कोर्ट ने प्रयागराज नगरनिगम के अधिवक्ता से एसटीपी से हो रहे शोधन की रिपोर्ट के बारे में पूछा. उन्होंने मामले में हलफनामे पर जवाब दाखिल करने को कहा है.