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श्री कृष्णप्रणामी मन्दिर में शरद पूर्णिमा उत्सव की धूम,विशेष पूजन कर रास गरबा के आयोजन के साथ ही खीर का बंटेगा प्रसाद,होगी सभी की मनोकामना पूर्ण

अनादि अक्षरातीत श्री कृष्ण के श्री कृष्णप्रणामी मन्दिर में रास-गरबा का आयोजन व शरद पूर्णिमा का उत्सव-

प्रयागराज– साल भर में पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं में से शरद पूर्णिमा खास होती है.आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं,जो कि आज है.मान्यता अनुसार आज का चन्द्र सोलह कलाओं के पूर्णता से साथ अपनी चांदनी विखेरता है.देश भर के मंदिरों में रहती है धूम.श्री कृष्ण प्रणामी मंदिरों में विशेष आयोजन होता है.देश विदेश के श्रद्धालु जुटते हैं.

 जानें,श्री कृष्णप्रणामी मन्दिर के बारे में-

हर साल की भांति इस बार भी श्री कृष्णप्रणामी मन्दिर भावतीपुरी धाम (भइयां) में शरदोत्सव मनाया जा रहा है.आसपास के श्रद्धालुओं के साथ ही छत्तीसगढ़ के दुर्ग से भी काफी सुन्दरसाथ मन्दिर आये हैं। यह मंदिर 1858 में ब्रह्मलीन पूर्ण ब्रह्म परमात्मा ब्रह्ममुनी श्री गोपालदास महराज जिन्हें परमहंस महराज के नाम से इस संप्रदाय के लोग पूजते हैं,ने बनवाया था.अति प्राचीन इस मंदिर में देश विदेश से प्रणामी सुन्दरसाथ आते रहते हैं। इस संप्रदाय में श्रद्धालुओ को सुन्दरसाथ कहा जाता है,जो कि प्रणामी संप्रदाय से जुड़े होते हैं.श्री परमहंस महराज की अनंत व अद्भुत चमत्कारिक वृतांत इस मंदिर से जुड़ा हुआ है जिनका लोग गुणगान करते हैं।

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मेजा/भ‌इयां में स्थित श्री कृष्ण प्रणामी मंदिर में सरदपूर्णिमा महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। एक तरफ जहां जाति-पांति से ऊपर उठकर समस्त ग्रामीण एक-दूसरे को मुबारक बाद देते दिखाई दिए वहीं दूसरे प्रदेशों से आए श्रद्धालु जनों द्वारा साप्ताहिक पारायण में कुलजम -स्वरुप साहब का पाठ बैठाया गया है। मंदिर के बारे में जानकारी देते हुए महन्त श्री ब्रह्मा नंद जी महाराज ने बताया कि इस मंदिर में पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर अनादि अक्षरातीत की पूजा होती है। जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट एवं मुरली ही प्रतीक स्वरूप हैं। यह बात और है कि निजानंद सम्प्रदाय से जाने जाने वाले इस मंदिर में मूर्ति पूजा नहीं होती है। सामाजिक समरसता का प्रतीक यह मंदिर 18वीं सदी में स्थापित हुआ था। संस्थापक रहे श्री 108परमहंस गोपाल मणी दास जी के बारे में जानकारी प्रदान करते हुए बताया गया कि 302वर्षीय परमयोगी सशरीर धामगमन हुए महात्मा द्वारा जाति-पाति का बंधन खत्म करके एक मानवमात्र की अवधारणा पर प्रणामी मंदिर स्थापित किया गया था। जिसकी विशेषता है कि दलित वंचित या पिछड़ी व अगड़ी जाति से हटकर सबको सुन्दर साथ नाम से संबोधित किया जाता है।जिसका परिणाम यह है कि किसी भी उत्सव को समस्त जातियों के लोग पूरी निष्ठा व समर्पित भावना से मनाते हैं। मन्दिर से जुड़े धामी, व ट्रस्टी अवधेश मिश्रा, एडवोकेट गोविंद मिश्र,कमलेश मिश्र, व वरिष्ठ पुजारी लालपति तिवारी ने बताया कि इस बार मन्दिर में विशेष तैयारी की गई है जिसमे मन्दिर को सजाकर राजश्यामा की विशेष पूजा अर्चना करते हुए शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाएगा.

मन्दिर में श्री परायण पाठ का स्वरूप (फ़ोटो)

 

कि श्री कृष्णप्रणामी संप्रदाय में मूर्ति पूजा नही की जाती,बरन श्री कृष्ण व राधारानी के बंसी व मुकुट को प्रतीकात्मक रूप में सिंहासन पर पधराकर पूजा जाता है.श्री कृष्ण को पूर्ण ब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत के रूप में “राज जी” एवं राधारानी को “श्यामा जू” के नाम से सुमिरन किया जाता है.स्वर्ण सिंहासन पर रखे प्रतीक की पूजा व श्री परमहंस महराज के वस्त्र,खड़ाऊं व उनके आसन की पधरावनी की पूजा अर्चना कर श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूरी करने की बात कही जाती है.

कहाँ है यह मंदिर-

यह मंदिर प्रयागराज से 45 किलोमीटर मेजा तहसील के भइयां गाँव मे स्थित है.यहाँ के लोग बताते हैं कि श्री कृष्ण प्रणामी मन्दिर की रज माथे पर लगाने मात्र से श्री राज जी व परमहंस जी की कृपा बरसती है,इसकी रज माथे पर लगाने दूर दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.शरद पूर्णिमा की तैयारी जोरों से की जा रही है.रात में पूर्णचन्द्र की धवल चाँदनी में रास गरबा खेला जाएगा तथा विशेष पूजन कर खीर का भोग लगाया जाएगा। अमृतमयी खीर हो जाने की मान्यता अनुसार फिर प्रसाद वितरण होगा.इसकी जानकारी श्री कृष्णप्रणामी ट्र्स्ट के प्रमुख सदस्य कौशलेश मिश्र ने दी.

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श्री कृष्ण ने किया था महा-रास..

बृज क्षेत्र में शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा (रस पूर्णिमा) के रूप में भी जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण ने दिव्य प्रेम का नृत्य ‘महा-रास’ किया था. शरद पूर्णिमा की रात कृष्ण की बांसुरी का दिव्य संगीत सुनकर, वृंदावन की गोपियां अपने घरों और परिवारों से दूर रात भर कृष्ण के साथ नृत्य करने के लिए जंगल में चली गई थीं. यह वह दिन था जब भगवान कृष्ण ने हर गोपी के साथ कृष्ण रूप में रास किया था. ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने उस रात को लंबा कर दिया था और वह रात इंसानी जीवन से अरबों साल के बराबर थी.

शरदपूर्णिमा पर खीर का महत्व-

भारतीय मान्यता है कि,इस दिन चंद्रमा में उपचारी गुण होते हैं जो शरीर और आत्मा को पोषण देते हैं.खास मान्यता यह भी है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा(moon) की किरणों से अमृत निकलता है इसलिए उसका लाभ लेने के लिए खीर को रात में चंद्र की रोशनी में रखा जाता है,उसके बाद सुबह के समय खीर का प्रसाद के रूप में सेवन व वितरण किया जाता है.

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