36 गढ़ में पहुंचे झारखंड के 36 विधायक: तो क्या बच जाएगी हेमंत सोरेन की कुर्सी या कोई और चेहरा बैठेगा कुर्सी पर,यह तय कर सकेंगे 36 गढ़ आये 36 विधायक?
रायपुर – सब खेल तमाशा कुर्सी का,देख तमाशा कुर्सी का.जी हां,एक बार फिर कुर्सी बचाने की कवायद दिखाई व सुनाई पड़ रही है। सिंहासन बत्तीसी नही बल्कि अब सिंहासन छत्तीसी हो गया। झारखंड के 36 विधायक छत्तीसगढ़ में डेरा जमा दिए हैं। हेमंत सोरेन की कुर्सी पर तथाकथित रूप से खतरा मंडरा रहा है। कुछ दिन पूर्व कुछ ऐसा ही खतरा महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर भी मंडराया था जो सच भी साबित हुआ। गुजरात मे पनाह लिए थे महाराष्ट्र के शिवसेना के विधायक मौजूदा मुख्यमंत्री शिंदे के साथ। हेमंत सोरेन को पड़ोसी राज्य का फायदा मिल सकेगा या नहीं,यह देखने वाली बात होगी। क्या छत्तीसगढ़ की खातिरदारी विधायकों को रास आएगी या छान घोंट कर मस्ती में होश खो देंगे यह समझने वाली बात होगी। जो भी हो पर यह खेला लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये बिल्कुल भी उचित नही है।
राजनीति में अब अजब गजब का खेला होने लग गया है। पहले मध्यावधि चुनाव होने की बात सुनाई देती थी,लेकिन अब तो चुनाव वुनाव तो दूर,सीधे कुर्सी ही छीन लेने वाली बात होने लग गई। इसी कुर्सी के लिए सब नौटंकियां हो रही हैं। झारखंड में सरकार का मुखिया बदलने का खेला छत्तीसगढ़ से शुरू होने जा रहा है। इसलिए खबर आई कि झारखंड के निर्णायक 36 विधायक रायपुर आ गए हैं। इधर भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने यह आरोप लगाया है कि झारखंड के 36 विधायक छत्तीसगढ़ के दारू चखने का आनंद ले रहे हैं,पार्टी कर रहे हैं। 36गढ़ का शराब व कबाब उनकी खिदमत में परोसा जा रहा है। यदि डॉ रमन का यह आरोप सही है,तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश दाऊ का समर्थन व सहयोग सोरेन मंडली को मिल रहा है। कुछ दिन खबर मिली थी कि सोरेन कोयला घोटाले यानी खनन घोटाले में शामिल होकर अपने नाम माइंस एलाटमेंट करा लिया था। इसका तार भी इस मामले से जुड़ा हो सकता है।
कब तक चलता रहेगा ऐसा खेल- राजनीतिक जानकारों की माने तो यह खेल गैर भाजपा राज्यों में चलता रहेगा क्योंकि महाराष्ट्र में इसका प्रयोग सफल रहा है। विश्लेषकों ने तो यहां तक कह दिया कि हो सकता है कि छत्तीसगढ़ में भी तोड़फोड़ की गणित न हो जाए, हालांकि छत्तीसगढ़ में तो एकतरफा कांग्रेस की ही जीत है और सरकार भी पूर्ण बहुमत की है,ऐसी कोई गूंजाइश नही दिखती,यह दीगर बात है कि टीएस बाबा प्रदेश सरकार के मुखिया से नाराज चल रहे हैं। यदि यही खेला होता रहा तो लोकतंत्र का मायने ही क्या,चुनाव होने का मतलब ही क्या निकलेगा? लोगों ने और विपक्ष ने तो यहां तक कह डाला कि जब तक भाजपा की सरकार केंद्र में रहेगी तब तक ऐसा ही होगा। यदि भाजपा की सरकार सभी प्रान्तों में हुई तब जाकर यह खेल खत्म हो सकता है। तो ऐसे में क्या चुनाव व लोकतांत्रिक व्यवस्था के मायने नगण्य हो जाएंगे? भाग्य और कर्म का मेल जोल अब जनता नही बल्कि शीर्ष पर बैठी सरकारें तय करेंगी? कुछ भी हो चुनाव आयोग को इन मामलों में दखल दिखानी चाहिए ताकि जनतंत्र से लोगों का विश्वास न उठ जाए। हेमंत सोरेन की सरकार बचने व कायम रहने तक सीमित न होकर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा सवोपरि है इस ओर ध्यान होगा।